समधी का खत
मैं शर्मिंदा हूं समधी जी, और कहूँ क्या आपको।
तुमने एक छछूंदर पाली, मैंने पाला सांप को।।
बड़े भाव से आपने मेरे,कुल को कन्या दान किया। धूमधाम से मैने भी ,दोनों कुल का सम्मान किया।।
धर्म समझकर हम दोनों ने जोड़ा जूड़ी-ताप को……. तुमने एक छछूंदर पाली मैंने पाला सांप को।।1।।
आपकी बेटी,बहू मेरी,निज धर्म का पालन करती है। वहां झगड़ती थी भावज से,यहां ननद से लड़ती है।।
सास-ससुर को यूं चाहे,ज्यूं सुख चाहे संताप को…… तुमने एक छछूंदर पाली, मैने पाला सांप को ।।2।।
समझा था बेटा सुशील,सज्ज्न है आज्ञाकारी है। अब नित रूप नवीन दिखाता,जैसे इच्छाधारी है।।
रंग बदलता है गिरगिट सा,पूत देखकर बाप को….. तुमने एक छछूंदर पाली मैंने पाला सांप को ।।3।।
जहां गूंजती थी किलकारी,वहां क्लेश का साया है। मेरे स्वर्ग से सुन्दर घर को,मिलकर नर्क बनाया है।।
“अजय”पुण्य बोया था हमने,पर उपजाया पाप को….. तुमने एक छछूंदर पाली, मैने पाला सांप को ।।4।।
आचार्य डा.अजय दीक्षित “अजय”
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Samadhee Ka Khat
Main sharminda hu samadhee ji, or kahu kya aapko. Tumne ek chachunder pali, mene pala saap ko.
Bade bhav se aapne mere kul ko, kanyadaan kiya. Dhoomdham se mene bhi, dono kul ka samman kiya. Dharam samajhkar hum dono ne joda judi-taap ko….. Tumne ek chachunder pali, mene pala saap ko ।।1।।
Aapki beti, bahu meri, nij dharam ka palan karti hai. Vhan jhagadti thi bhavaj se, yhan nanad se ladti hai. Saas-Sasur ko yun chahe, jyun sukh chahe santap ko……. Tumne ek chachunder pali, mene pala saap ko ।।2।।
Samjhta tha beta sushil, sajjan hai aagyakaari hai. Ab nit naye roop dikhata, jese ichchadhari hai. Rang badalta hai girgit jesa, put dekh kar baap ko……. Tumne ek chachunder pali, mene pala saap ko ।।3।।
Jhan gunjati thi kilkari, vhan klesh ka saaya hai. Mere swarg se sunder ghar ko, milkar narak bnaya hai. “Ajay” puny boya tha hamne, pr upjaya paap ko…….. Tumne ek chachunder pali, mene pala saap ko ।।4।।
Dr. Ajay Dixit “Ajay”
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