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उड़ान से पहले Udaan se Pahle
बस्ती कुम्हारों की Basti Kumharon Ki
फिर लगा फुटपाथ करवट सा बदलने
पीठ सी दिखने लगी चौड़े पठारों की
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धुंध के बीच से ही सूरज दिखा
नींद में ही लिख उठा कुछ अनलिखा
टोलियां गा उठी खुलकर कामगांरो की
हाथ आए आग वाले सिलसिले
मोम से हो गए लोहे के किले
जीत जागी धुप वाले घुड़सवारों की
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भोर आई रात से लड़कर नई
अभी लड़ने को पड़ी राते कई
दिये फिर गढ़ने लगी बस्ती कुम्हारों की
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यश मालवीय
यह भी पढ़े – उड़ान से पहले – भाई बिना तुम्हारे
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यह रचना यश मालवीय द्वारा रचित पुस्तक उड़ान से पहले से ली गई है।
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