Beti Par Kavita | Beti Jab Ghar Aati Hai | बेटी जब घर आती हैं – यह कविता राजेन्द्र सनाढ्य राजन कोठारिया जी राजसमंद के द्वारा लिखी गयी है।
बेटी जब घर आती हैं
बहुत दिनों के बाद,
बेटी जब घर आती हैं,
पिता की बुढ़ी आंखें,
एकदम छलछला जाती हैं।
पिता को सामने पा कर,
वो चरणों में झुक जाती हैं,
थौड़ा स्वयं को संभाल कर,
परिचित सीनें से लग जाती हैं।
दिल के टुकड़े को,दिल से लगा कर,
पिता का चेहरा दमकनें लगता हैं,
कैसी हो बेटा,कह-कह कर,
सिर पर हाथ फैरने लगता हैं।
फिर एक कोनें में बैठ कर,
अति भावुक वो हो जाता हैं,
कल की ही तो बात थी,
वह यादों में खो जाता हैं।
कैसे मैं इसको,अंगुली,पकड़,
पां-पां खूब चलाता था,
पास में बैठा कर मेरे,
हाथ से निवालें खिलाता था।
इसको नीन्द आने लगती तो,
धीरे-धीरे झुला झुलाता था,
फिर भी एक आंख खोलती,
फिर सीने पर सुलाता था।
मैं स्वयं बच्चा बन कर,
इसके साथ,गटरमस्ती करता था,
इसके रूठनें पर,मुंह की मैं,
विभिन्न आक्रतियें बनाता था।
जब विदा हो कर ग ई,मैं,
जी भर कर रोया था,
बहुत दिनों तक मैं गहरी,
नीन्द नहीं सोया था।
पापा रोटी जीम लो,
बेटी की आवाज आती हैं,
यादों ही यादों में,न जानें,
कितनी घड़ी निकल जाती हैं।
राजन आज मेरी सोन चिरैयां,
अपना स्वयं का घौंसला बनाती हैं,
अपने बाबुल के घर जैसें ही,
वो अपने घर को सजाती हैं।
वो अपने घर को सजाती हैं।।
राजेन्द्र सनाढ्य राजन
कोठारिया
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