भोंर का उजाला | Bhor Ka Ujala | डॉ लोकमणि गुप्ता जी होम्योपैथिक चिकित्सक है। और बहुत बड़े समाज सेवक है। आइये पढ़ते है आदरणीय डॉ लोकमणि गुप्ता जी द्वारा रचित रचना ‘भोर का उजाला’-
भोंर का उजाला (Bhor Ka Ujala)
कोविड गया या नहीं गया,
तीसरी लहर आयेगी न आयेगी।
किन्तु जो कुछ कोविड ले गया ,
उसकी टीस कभी न जायेगी।।
ताली घंटे शंख बजाकर,
व्यापार कारोबार बन्द कराकर।
सबके मूॅह नाक छुपा कर,
बन्द कर दिया था घर में घुसाकर।।
विश्वास था बच जाएंगे!
ये उपाय अपनाकर!!
जाने कहां से ये दबे पांव आकर!
लील गया रिश्ते ओर परिवार!!
आर्थिक रीढ़ चरमरा गई,
सामाजिक व्यवस्था भरभरा गई।
साथ निभाने की कसमें थी खाई,
मॅझधार में ही खो गये हमराही।।
पूर्व में सुन टेलीफोन टेलिविजन की,
मिलती थी जानकारियां।
कुछ अपनों की कुछ परिजनों की,
कहीं ना जा पाये कैसी मजबूरियां।।
लोक बताए हृदय में विचार आया!
छोटी उम्र मध्यम वय के बच्चे अनेक!!
जिन्हें कोविड ने एकल जीवित बनाया!
क्यों न उनके लिए काम करें नेक!!
हॅंसने मुस्कुराने की उम्र में!
खेलने खिलाने की उम्र में!!
नन्हे मुन्ने अनाथ हुए!
वृद्धजन जाने कितने असहाय हुए!!
हो सके तो इनका स्थाई पुनर्वास करें,
केवल क्षणिक व आर्थिक नहीं!
वरन् हों स्वावलंबित और संरक्षित,
आओ मिलकर इनका पुनर्विवाह करें!!
एकाकी को जीवन साथी मिलेंगे,
बच्चों को माता पिता मिलेंगे।
बुजुर्गो की खिलेगी बगिया,
फिर से घर आंगन महकेंगे।।
डॉ लोकमणि गुप्ता-बंसल अग्रवाल
कोटा, राजस्थान
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