*****
दर्द का इस रूह से रिश्ता पुराना हो गया
आज हमको मुस्कुराये भी जमाना हो गया
आदमी तो आदमी की जान का प्यासा रहा
खेल राजाओं का था सरवन निशाना हो गया
किस तरह मक्कारियां करने लगा है आदमी
हम गरीबों का लहू उनका खजाना हो गया
इश्क के अब नाम से भी डर बहुत लगने लगा
हाथ आई बेबशी लेकिन फसाना हो गया
अब मदद करना “अजय” अपराध सा होने लगा
होम करते हाथों को अपने जलाना हो गया
आचार्य डा.अजय दीक्षित “अजय”
*****
Dard ka is rooh se rishta purana ho gaya
Aaj humko muskuraye bhi jamana ho gaya
Aadami to aadami ki jaan ka pyasa raha
Khel rajaon ka tha shravan nishana ho gaya
Kis tarah makkariyan karne laga hai aadami
Hammgareebon ka lahoon unka khajana ho gaya
Ishq ke ab naam se bhi dar bahut lagne laga
Haath aayi bebashi lekin fasana ho gaya
Ab madad karna “Ajay” apraadh sa hone laga
Hom karte haatho ko apne jalana ho gaya
Dr. Ajay Dixit “Ajay”
*****
डा. अजय दीक्षित जी द्वारा लिखे अन्य गीत –
- वतन रो रहा है
- रोते-रोते मुस्कराना पडता है
- अपना देश हिंदुस्तान
- कलम लिखै तौ यहै लिखै
- रख्खो उम्मीद दिल के कोने में
Join the Discussion!