कलियुग की माया | Kalyug Ki Maya
(१)
धनि कलियुग महराज आप ने लीला अजबदिखाई है ।
उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है । ।
नीति पंथ उठ गया कचहरी पापन से गरूआई है ।
धर्म गया पाताल सभी के मन बेधर्मी छाई है । ।
गुप्त हुए सच्चे वकील झूठों की बात सवाई है ।
सच्चों की परतीत नही झूठों ने सनद बनाई है । ।
न्याय छोड अन्याय करें राजों ने नीति गँवाई है ।
हकदारों का हक्क मेट बेहक पर कलम उठाई है । ।
जो हैं जाली फरेब वाले उनकी ही बनि आई है ।
उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है ।।
(२)
मांसाहारी बने सन्यासी पोथी बगल दबाई हैं ।
मूड मुडाकर इक धेले में कफनी लाल रंगाई है । ।
पंथ चले लाखों पाखण्डी अदभुत कथा बनाई है ।
मुँह काला कर दिया किसी ने शिर पे जटा रखाई है ।।
हुए नीच कुरसी नसीन ऊँचो को नही तिपाई है ।
जुगनू पहुँचे आसमान पर जाकर दुम चमकाई है। ।
फाँके करते संत मिले भडुओं को दूध मलाई है ।
उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है । ।
(३)
सास बहू से लडै बहू भी, आँख फेर झुँझलाई है ।
लेकर मूसल हाथ कोसती , दाँत पीस उठ धाई है । ।
घरवाले को छोड गैरकर,कुल की लाज गँवाई है ।
निजपति कीसेवा तजकर ,परपति से प्रीति लगाई है ।
पुरूष हुए ऐसे व्यभिचारी, विषय वासना छाई है ।
वेश्याओं के फन्दे में पड, घर की तजी लुगाई है । ।
मात पिता की करै बुराई, नारि परम सुखदाई है।
उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है ।
(४)
व्याह बुढापे में जो करते, उनपर गजब खुदाई है ।
साठ बरस के आप, करी कन्या के संग सगाई है । ।
कुछ दिन पीछे आप मर गये, करके रांड बिठाई है ।
लगी करन व्यभिचार लाज तजि,घर-घर होत हँसाई है,
कन्याओं की करै दलाली, मंत्री जिनका भाई है।
शर्म रही नहि वेशर्मों को बेटी बेंच कर खाई है।
त्याग दिया है बहन भांजी, साली न्योति जिमाई है ।
उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है । ।
(५)
गंगाजल गोरस को छोडकर,गाड़ी भाँग छनाई है ।
भक्ष्य अभक्ष्य लगे खाने, मदिरा की होत छकाई है । ।
श्वासुर बहू को कुदृष्टि देखै, अपनी नियति डुलाई है ।
ठट्ठा अरू मसखरी करै, सासू से ज्वान जमाई है । ।
कहै भतीजा चचा सेअपने, तू मूरख सौदाई है।
हमें चैन करने से मतलब, किसकी चाची ताई है ।।
बहिन – बहिन से लडै और, लडता भाई से भाई है ।
उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है ।।
(६)
जामा अंगा दिया त्याग, अरू पगडी फारि बहाई है ।
पहन कोट पतलून शीश पर,टोपी गोल जमाई है ।।
तोड तख्त अरू सिंहासन को,लाके बेंच बिछाई है।
खीर खाँड़ को त्याग करके,रोटी डबल पकाई है ।।
तोड के ठाकुर द्वारा मस्जिद, सबकी करी सफाई है ।
गिरजाघर में जा कर के,ईसा की करी बुराई है ।।
बात करैं सब अंगरेजी मा,निज भाषा बिसराई है ।
उलटा चलन चला दुनिया में,सबकी मति बौराई है ।।
(७)
मित्र शत्रु सम हुए प्रीति की,डाली तोड बहाई है ।
विद्या बिन हो गये विप्र,गायत्री तलक भुलाई है ।।
क्षत्रिय बैठे नारी बनकर,ले तलवार छिपाई है ।
बन आईना कुछ बनियों ने माया मुफ्त लुटाई है ।।
शूद्र हुए धनवान ब्राह्मणों,ने कीन्हीं सेवकाई है ।
ग्वाल-बाल और मथुरा के,चौबों की बात बनि आई है।।
चारों युगों से कलि ने अपनी,नई रीति दिखलाई है ।
उलटा चलन चला दुनिया में,सबकी मति बौराई है ।।
(८)
अपूज पुजने लगे कहैं सब,शिर पर देवी आई है ।
घर-घर में गुलगुले शेख सैयद की चढी कढाई है।।
परब्रह्म को छोड भूत,प्रेतों की दई दुहाई है।
मूड हिलाती बैठी मालिन,कहैं कुसुम्भी माई है।।
बालभोग ठाकुर को नहि,सय्यद के लिए मिठाई है ।
संत को कम्बल नही,पतुरिया को कुर्ती सिलवाई है ।।
गुरू हरैं चेलों का धन,चेला करता चतुराई है ।
उलटा चलन चला दुनिया में,सबकी मति बौराई है ।।
(९)
विधवा लग गई पान चबाने,दे शुरमा मुसकाई है ।
नित करती श्रंगार देखकर,अहिवाती शरमाई है ।।
बैठे ज्वाँरी बनके घरमा,हुआ जगत अन्यायी है ।
सब लक्षण विपरीत और,घर-घर में होत लडाई है ।।
गाय जाय लाखों मारी,करता नही -कोई सुनाई है।
इसी से पडता अकाल सृष्टि में, संपति सकल बिलाई है ।।
हो दयाल हेनाथ “अजय”पे,कलियुगकी महिमा गाई है ।।
।। इति ।।
आचार्य डा.अजय दीक्षित “अजय”
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- वतन रो रहा है
- रोते-रोते मुस्कराना पडता है
- अपना देश हिंदुस्तान
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- रख्खो उम्मीद दिल के कोने में
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