Ahmad Faraz (अहमद फ़राज़)
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Kis ko gumaan hai abke mere saath tum bhi the
Kis ko gumaan hai abke mere saath tum bhi the
Haaye vo roz-o-shab ke mere sath tum bhi the
Yaadash bakhair ahed-e-gujashta ki sohbatein
Ek daur tha ajab ki mere sath tum bhi the
Be-mehri-e-hayaat ki shiddat ke bawjood
Dil mutmaeen tha jab ke mere sath tum bhi the
Mai aur taqabile-gam-e-dauraan ka haunsla
Kuch ban gya sabab ki mere sath tum bhi the
Ik khawab ho gayi raho-rasam dosti
Ek veham sa hai ab ki mere sath tum bhi the
Wo bazm mere dost yaad to hogi tumhe ‘Faraz’
Vo mehfil-e-tarab ki mere sath tum bhi the
Ahmad Faraz
<—–Haath uthaye hain magar lab pe dua koi nahi Jab Kabhi chahe andheron mein ujale usne—->
Collection of Ghazals and Lyrics of Ahmad Faraz
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किस को गुमाँ है अब के मेरे साथ तुम भी थे
किस को गुमाँ* है अब के मेरे साथ तुम भी थे
हाय वो रोज़ो-शब* कि मेरे साथ तुम भी थे
यादश बखैर* अहदे-गुजशता* की सोहबतें*
एक दौर था अजब कि मेरे साथ तुम भी थे
बे-महरी-ए-हयात* की शिददत के बावजूद
दिल मुतमईन* था जब कि मेरे साथ तुम भी थे
मैं और तकाबिले-गमे-दौराँ* का हौसला
कुछ बन गया सबब* कि मेरे साथ तुम भी थे
इक खवाब हो गई है रहो-रसम* दोस्ती
एक वहम सा है अब कि मेरे साथ तुम भी थे
वो बज़म मेरे दोस्त याद तो होगी तुम्हें ‘फराज़’,
वो महफिले-तरब* कि मेरे साथ तुम भी थे
गुमाँ = भ्रम
रोज़ो-शब = रात दिन
बखैर = अचछी याद
अहदे-गुजशता = बीते दिनों की
सोहबतें = साथ
बे-महरी-ए-हयात = मूल्यहीन जीवन
मुतमईन = संतुष्ट
सबब = कारण
तकाबिले-गमे-दौराँ = दुखों के समय की तुलना
रहो-रसम = प्रेम व्यवहार
बज़म = महफिल
महफिले-तरब = अचछी महफिल, खुशी की महफिल
अहमद फ़राज़
<—–हाथ उठाए हैं मगर लब पे दुआ कोई नहीं जब कभी चाहे अंधेरों में उजाले उसने—->
अहमद फ़राज़ की ग़ज़लों और गीतों का संग्रह
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