Qateel Shifai
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Dil pe aaye hue ilzaam pahchaante hai
Dil pe aaye hue ilzaam pahchaante hai
Log ab mujh ko tere naam se pahchaante hai
Aaina-daar-e-mohabbat hoon ki arbaab-e-wafa
Apne gham ko mere anjaam se pahchaante hai
Baada o jaam bhii ik wajah-e-mulaakaat sahi
Hum tujhe gardish-e-ayyaam se pahchaante hai
Pau phate kyoon meri palkon se sajaate ho inhe
Ye sitaare to mujhe shaam se pahchaante hai
Qateel Shifai
<—–Shaayad mere badan ki ruswai chahta hai Kya jaane kis khumaar mein kis josh mein gira—->
Collection of Qateel Shifai Ghazals and Shayari
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दिल पे आये हुए इलज़ाम पहचानते है
दिल पे आये हुए इलज़ाम पहचानते है
लोग अब मुझ को तेरे नाम से पहचानते है
आईना-दार-ए-मोहब्बत* हूँ कि अरबाब-ए-वफ़ा*
अपने ग़म को मेरे अंजाम से पहचानते है
बादा* ओ* जाम भी इक वजह-ए-मुलाक़ात सही
हम तुझे गर्दिश-ए-अय्याम* से पहचानते है
पौ फटे क्यूँ मेरी पलकों से सजाते हो इन्हे
ये सितारे तो मुझे शाम से पहचानते है
* आईना-दार-ए-मोहब्बत – प्यार को दर्शाने वाला
* अरबाब-ए-वफ़ा – निष्ठावान लोग
* बादा – शराब
* ओ – और
* गर्दिश-ए-अय्याम – भाग्य का उलटफेर
क़तील शिफ़ाई
<—–शायद मेरे बदन की रुसवाई चाहता है क्या जाने किस खुमार में किस जोश में गिरा—->
क़तील शिफ़ाई कि ग़ज़लों और शायरियों का संग्रह
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