Eid Mubarak Poems In Hindi | ईद पर कवितायें
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हम सब मिलकर ईद मनायें
सबकी उम्मीदों पर छायें
जग में ऐसे प्यार लुटायें
हम सब मिलकर ईद मनायें
नेक बनेंगे एक बनेंगे
भेद नहीं प्यार करेंगे
नाचें गायें धूम मचायें
हम सब मिलकर ईद मनायें
मीठी-मीठी सिवई खिलायें
सब अधरों पर खुशियाँ लायें
प्यार करो त्यौहार सिखायें
हम सब मिलकर ईद मनायें
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हमको,
तुमको,
एक-दूसरे की बाहों में
बँध जाने की
ईद मुबारक।
बँधे-बँधे,
रह एक वृंत पर,
खोल-खोल कर प्रिय पंखुरियाँ
कमल-कमल-सा
खिल जाने की,
रूप-रंग से मुसकाने की
हमको,
तुमको
ईद मुबारक।
और
जगत के
इस जीवन के
खारे पानी के सागर में
खिले कमल की नाव चलाने,
हँसी-खुशी से
तर जाने की,
हमको,
तुमको
ईद मुबारक।
और
समर के
उन शूरों को
अनुबुझ ज्वाला की आशीषें,
बाहर बिजली की आशीषें
और हमारे दिल से निकली-
सूरज, चाँद,
सितारों वाली
हमदर्दी की प्यारी प्यारी
ईद मुबारक।
हमको,
तुमको
सब को अपनी
मीठी-मीठी
ईद-मुबारक।
केदारनाथ अग्रवाल
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वो बच्चों की आंखों में सपने सुनहरे।
हसीनों के हाथों पें मेंहदी के पहरे।
सजीली दुकानों में रंगों के लहरे।
वो ख़ुश्बू की लडियां उजालों के सहरे।।
उमंगें भरी चाँद रातें सुहानी।
बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।।
वो राहों में ख़ुश-पोशयारों के हल्ले।
वो किरनों से मामूर गलियाँ मुहल्ले।
झरुकों में रंगीं दुपटटों के पल्ले।
वो मांगों में अफ़शांवो हाथों में छल्ले।।
वो अपनी सी तहज़ीब की तरजुमानी।
बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।।
वो कुल्फ़ी के टुकड़े वो शरबत के गोले।
चहकते से बच्चे बड़े भोले भोले।
वो झूलों पे कमसिन हसीनों के टोले।
फ़ज़ा में ग़ुबारों के उड़ते बगूले।
बसंती गुलाबी हरे आसमानी।
बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।।
वो रौनक, वो मस्तीभरी चहल पहलें।
वो ख़्वाहिश कि आओ मुहल्लों में टहलें।
इधर चल के बैठें,उधर जा के बहलें।
कुछ आंखों से सुनलें कुछ आंखों से कहलें
करें जा के यारों में अफ़साना-ख़्वानी।
बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।।
झलकती वो चेहरों पे बरकत घरों की।
निगाहों में शफ़क़त बड़ी-बूढियों की।
अदाओं में मासूमियत कमसिनों की।
वो बातों में अपनाईयत दोस्तों की।।
मुरव्वत,करम,मुख़लिसी,मेहरबानी।
बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।।
मगर कहाँ ” साज़ “वो दौरे-राहत।
लबों पे हंसी है न चेहरों पे रंगत।
न जेबों में गर्मी न दिल में हरारत।
न हाथों के मिलने मेंअगली सी चाहत।
हक़ीक़त था वो दौर या इक कहानी।
बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।।
अब्दुल अहद साज़
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ख़ुशी के फूल खिलेंगे हर इक घर में तो ईद समझूँगा
धनक के रंग बिखरेंगे हर इक घर में तो ईद समझूँगा
बुलबुलें गाती नहीं हैं अभी कोयल कूकने से डरती है
जब सर से उतरेगा ये ख़ौफ़े-अलम तो ईद समझूँगा
भूख की आँखों में रोटियों का सपना अभी अधूरा है
जब चूल्हा जलेगा हर इक घर में तो ईद समझूँगा
हामिद की निगाह अब भी चिमटे पे जमी रहती है
कि वो भी ख़रीदेगा जब खिलौने तो ईद समझूँगा
ख़ुदा क़फ़स में उदास बैठा है शैतान खिलखिलाते हैं
जो निज़ाम कायनात का बदलेगा तो ईद समझूँगा
भूल कर नफ़रत-अदावत रंज़ो-ग़म शिकवे-गिले
सब भेजेंगे जब सबको सलाम तो ईद समझूँगा
अकबर रिज़वी
Eid Mubarak Poems In Hindi | ईद पर कवितायें
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