Munawwar Rana
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Jagmagaate hue sheharon ko tabaahi degaa
Jagmagaate hue sheharon ko tabaahi degaa
Aur kya mulk ko magroor sipahee dega
Ped ummeedon ka ye soch ke na kaataa kabhi
Fal na aa paayenge isme to hawaa hee degaa
Tumne khud zulam ko Meyaare-Hukumat samjhaa
Ab bhalaa kaun tumhe masnade-shaahee degaa
Jisme sdiyon se gareebon ka lahoo jaltaa ho
Wo diya raushani kya degaa siyaahee degaa
Munsife-Waqt hai too aur main mazloom magar
Tera kaanoon mujhe phir bhi sazaa hee degaa
Kis me himmat hai jo sach baat kahegaa Rana
Kaun hai ab jo mere haq me gawaahee degaa
Munawwar Rana
<—–Safar me jo bhi ho Rakhte-Safar uthaataa hai Khoobsoorat jheel me hnanstaa kanwal bhi chaahiye—->
Collection of Munawwar Rana Ghazals and Shayari
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जगमगाते हुए शहरों को तबाही देगा
जगमगाते हुए शहरों को तबाही देगा
और क्या मुल्क को मग़रूर* सिपाही देगा
पेड़ उम्मीदों का ये सोच के न काटा कभी
फल न आ पाएँगे इसमें तो हवा ही देगा
तुमने ख़ुद ज़ुल्म को मेयारे-हुक़ुमत* समझा
अब भला कौन तुम्हें मसनदे-शाही* देगा
जिसमें सदियों से ग़रीबों का लहू जलता हो
वो दीया रौशनी क्या देगा सियाही देगा
मुंसिफ़े-वक़्त* है तू और मैं मज़लूम* मगर
तेरा क़ानून मुझे फिर भी सज़ा ही देगा
किस में हिम्मत है जो सच बात कहेगा ‘राना’
कौन है अब जो मेरे हक़ में गवाही देगा
* मग़रूर – घमण्डी,दम्भी
* मेयारे-हुक़ुमत – प्रशासन का मानदण्ड
* मसनदे-शाही – राजसी प्रतिष्ठा
* मुंसिफ़े-वक़्त – समय के न्यायकर्त्ता
* मज़लूम – प्रताड़ित
मुनव्वर राना
<—–सफ़र में जो भी हो रख़्ते-सफ़र उठाता है ख़ूबसूरत झील में हँसता कँवल भी चाहिए—–>
मुनव्वर राना कि ग़ज़लों और शायरियों का संग्रह
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