Munawwar Rana
*****
Siyasi aadami ki shakl to pyari nikalti hain
Siyasi aadami ki shakl to pyari nikalti hain
Magar jab guftagoo karta hai to chingaari nikalti hain
Labon pe muskaraahat dil me bejari nikalti hain
Bade logo me hi aksar ye bimari nikalti hain
Mohabbat ko jabardasti to laada ja nahi sakta
Kahi khidki se meri jaan almaari nikalti hain
Yahi ghar tha jaha miljul ke sab aek saath rahte the
Yahi ghar hain alag bhai ki aftaari nikalti hain
Munawwar Rana
<–Koi chehara kisi ko umar bhar accha nahi lagta Mein usko chhod na paya buri laton ki tarah—>
Collection of Munawwar Rana Ghazals and Shayari
*****
यह ग़ज़ल ज़नाब मुनव्वर राणा के संग्रह “घर अकेला हो गया” से ली गयी हैं
सियासी आदमी की शक्ल तो प्यारी निकलती है
सियासी आदमी की शक्ल तो प्यारी निकलती है
मगर जब गुफ्तगू करता है चिंगारी निकलती है
लबों पर मुस्कराहट दिल में बेजारी निकलती है
बडे लोगों में ही अक्सर ये बीमारी निकलती है
मोहब्बत को जबर्दस्ती तो लादा जा नहीं सकता
कहीं खिडकी से मेरी जान अलमारी निकलती है
यही घर था जहां मिलजुल के सब एक साथ रहते थे
यही घर है अलग भाई की अफ्तारी निकलती है
मुनव्वर राना
<—–कोई चेहरा किसी को उम्र भर अच्छा नहीं लगता मैं उसको छोड़ न पाया बुरी लतों की तरह——->
मुनव्वर राना कि ग़ज़लों और शायरियों का संग्रह
Tag – Shayari, Ghazal, Poetry, Poem, Kavita, Lyrics, शायरी, ग़ज़ल, पोइट्री, पोयम, कविता, लिरिक्स,
Join the Discussion!