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Bheed Ke Hum Aadmi Hai – भीड़ के हम आदमी है
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भीड़ के हम आदमी है
दशमलव की पीठ के जीरो नहीं
हमे सोचो, हमे समझो
परख लो चाहे कभी
हम जिये ही नहीं होकर
आइनो से अजनबी
भीड़ के हम आदमी है
उगे है हम, इसी धरती पर यहीं
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बंद कमरों में कभी भी
तुम हमे मत खोजना
हम नहीं वो, जिंदगी
जिनके लिए परियोजना
भीड़ के हम आदमी है
दूर अपने से नहीं होंगे कहीं
यश मालवीय
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यह रचना यश मालवीय द्वारा रचित पुस्तक उड़ान से पहले से ली गई है।
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