Best Dua Shayari From Great Shayar | दुआ शायरी, प्रसिद्ध शायरों की कलम से
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बाक़ी ही क्या रहा है तुझे माँगने के बाद
बस इक दुआ में छूट गए हर दुआ से हम
आमिर उस्मानी
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दुआ को हाथ उठाते हुए लरज़ता हूँ
कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए
इफ़्तिख़ार आरिफ़
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हज़ार बार जो माँगा करो तो क्या हासिल
दुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है
दाग़ देहलवी
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दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में
सो ज़ख़्म खाते रहे और दुआ दिए गए हम
इफ़्तिख़ार आरिफ़
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आख़िर दुआ करें भी तो किस मुद्दआ के साथ
कैसे ज़मीं की बात कहें आसमाँ से हम
अहमद नदीम क़ासमी
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दुश्मन-ए-जाँ ही सही दोस्त समझता हूँ उसे
बद-दुआ जिस की मुझे बन के दुआ लगती है
मुर्तज़ा बिरलास
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अभी दिलों की तनाबों में सख़्तियाँ हैं बहुत
अभी हमारी दुआ में असर नहीं आया
आफ़ताब हुसैन
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दूर रहती हैं सदा उन से बलाएँ साहिल
अपने माँ बाप की जो रोज़ दुआ लेते हैं
मोहम्मद अली साहिल
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अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो
बशीर बद्र
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अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
मुनव्वर राना
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अधूरे लफ़्ज़ थे आवाज़ ग़ैर-वाज़ेह थी
दुआ को फिर भी नहीं देर कुछ असर में लगी
फ़ातिमा हसन
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बुलंद हाथों में ज़ंजीर डाल देते हैं
अजीब रस्म चली है दुआ न माँगे कोई
इफ़्तिख़ार आरिफ़
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दुआ करो कि मैं उस के लिए दुआ हो जाऊँ
वो एक शख़्स जो दिल को दुआ सा लगता है
उबैदुल्लाह अलीम
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दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे
उदासियों में भी चेहरा खिला खिला ही लगे
बशीर बद्र
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ग़म-ए-दिल अब किसी के बस का नहीं
क्या दवा क्या दुआ करे कोई
हादी मछलीशहरी
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हाए कोई दवा करो हाए कोई दुआ करो
हाए जिगर में दर्द है हाए जिगर को क्या करूँ
हफ़ीज़ जालंधरी
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होती नहीं क़ुबूल दुआ तर्क-ए-इश्क़ की
दिल चाहता न हो तो ज़बाँ में असर कहाँ
अल्ताफ़ हुसैन हाली
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इक तेरी तमन्ना ने कुछ ऐसा नवाज़ा है
माँगी ही नहीं जाती अब कोई दुआ हम से
एजाज़ कमरावी
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इस लिए चल न सका कोई भी ख़ंजर मुझ पर
मेरी शह-रग पे मिरी माँ की दुआ रक्खी थी
नज़ीर बाक़री
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जाते हो ख़ुदा-हाफ़िज़ हाँ इतनी गुज़ारिश है
जब याद हम आ जाएँ मिलने की दुआ करना
जलील मानिकपूरी
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जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है
मुनव्वर राना
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जब लगें ज़ख़्म तो क़ातिल को दुआ दी जाए
है यही रस्म तो ये रस्म उठा दी जाए
जाँ निसार अख़्तर
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किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी
ज़मीन तेरी ख़ुदा मोतियों से नम कर दे
बशीर बद्र
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कोई चारह नहीं दुआ के सिवा
कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा
हफ़ीज़ जालंधरी
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कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहजे में
अजब तरह की घुटन है हवा के लहजे में
इफ़्तिख़ार आरिफ़
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क्या क्या दुआएँ माँगते हैं सब मगर ‘असर’
अपनी यही दुआ है कोई मुद्दआ न हो
असर लखनवी
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माँग लूँ तुझ से तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए
सौ सवालों से यही एक सवाल अच्छा है
अमीर मीनाई
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माँगा करेंगे अब से दुआ हिज्र-ए-यार की
आख़िर तो दुश्मनी है असर को दुआ के साथ
मोमिन ख़ाँ मोमिन
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माँगी थी एक बार दुआ हम ने मौत की
शर्मिंदा आज तक हैं मियाँ ज़िंदगी से हम
अज्ञात
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मैं क्या करूँ मिरे क़ातिल न चाहने पर भी
तिरे लिए मिरे दिल से दुआ निकलती है
अहमद फ़राज़
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मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी
कोई आहट न हो दर पर मिरे जब तू आए
बशीर बद्र
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मैं ज़िंदगी की दुआ माँगने लगा हूँ बहुत
जो हो सके तो दुआओं को बे-असर कर दे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
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मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे
न दवा याद रहे और न दुआ याद रहे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
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मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले
हँसी आ रही है तिरी सादगी पर
गोपाल मित्तल
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न चारागर की ज़रूरत न कुछ दवा की है
दुआ को हाथ उठाओ कि ग़म की रात कटे
राजेन्द्र कृष्ण
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न जाने कौन सी मंज़िल पे इश्क़ आ पहुँचा
दुआ भी काम न आए कोई दवा न लगे
अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी
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नाकाम हैं असर से दुआएँ दुआ से हम
मजबूर हैं कि लड़ नहीं सकते ख़ुदा से हम
अहसन मारहरवी
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राह का शजर हूँ मैं और इक मुसाफ़िर तू
दे कोई दुआ मुझ को ले कोई दुआ मुझ से
सज्जाद बलूच
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सहरा का सफ़र था तो शजर क्यूँ नहीं आया
माँगी थीं दुआएँ तो असर क्यूँ नहीं आया
ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र
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तकमील-ए-आरज़ू से भी होता है ग़म कभी
ऐसी दुआ न माँग जिसे बद-दुआ कहें
अबु मोहम्मद सहर
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उस दुश्मन-ए-वफ़ा को दुआ दे रहा हूँ मैं
मेरा न हो सका वो किसी का तो हो गया
हफ़ीज़ बनारसी
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उस मरज़ को मरज़-ए-इश्क़ कहा करते हैं
न दवा होती है जिस की न दुआ होती है
शफ़ीक़ रिज़वी
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वो बड़ा रहीम ओ करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मिरी दुआ में असर न हो
बशीर बद्र
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ये मोजज़ा भी किसी की दुआ का लगता है
ये शहर अब भी उसी बे-वफ़ा का लगता है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
मोजज़ा – असर
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