आचार्य चाणक्य ने हमारे जीवन को सुखी बनाए रखने के लिए कई नीतियां बताई हैं। इन नीतियों में कई रहस्य छिपे हुए हैं, जिनसे हमारे सुख और दुख की भी जानकारी प्राप्त हो जाती है। आचार्य चाणक्य ने एक नीति में तीन काम ऐसे बताए हैं, जिन्हें करने में हमें शर्म नहीं करना चाहिए। जो लोग इन कामों में शर्म करते हैं, उन्हें भविष्य में नुकसान हो सकता है।
आचार्य चाणक्य कहते है की ……
धनधान्यप्रयोगेषु विद्वासंग्रहणे तथा।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्ज: सुखी भवेत्।।
1. धन संबंधी काम में न करें शर्म
जो भी व्यक्ति धन से संबंधित कार्यों में शर्म करता है, उसे धन हानि का सामना करना पड़ता है। यदि किसी व्यक्ति को उधार दिया गया पैसा वापस लेना है और हम शर्म के कारण उससे पैसा मांग नहीं पा रहे हैं तो यह निश्चित है कि धन हानि होगी। अत: धन संबंधी कार्यों में शर्म नहीं करना चाहिए।
2. भोजन करने में न करें शर्म
यदि कोई व्यक्ति भोजन करने में शर्म करता है तो वह भूखा ही रह जाएगा। कभी-कभी कुछ लोग रिश्तेदारों के यहां या मित्रों के यहां भोजन करते समय शर्म करते हैं तो वे पेटभर खाना नहीं खा पाते हैं और भूखे ही रह जाते हैं। खाना खाने में कभी भी शर्म नहीं करना चाहिए।
3. गुरु से ज्ञान लेने में न करें शर्म
अच्छा विद्यार्थी वही है जो बिना शर्म किए अपने गुरु से सभी जिज्ञासाओं का उत्तर प्राप्त करता है। शिक्षा प्राप्त करने में जो विद्यार्थी शर्म करता है, वह अज्ञानी ही रह जाता है। विद्यार्थी को पढ़ाई करते समय शर्म न करते हुए सभी प्रश्नों के उत्तर गुरु से प्राप्त कर लेना चाहिए। जिससे भविष्य में किसी विषय में अज्ञानी होने की स्थिति से बचा जा सके।
कौन थे आचार्य चाणक्य
भारत के इतिहास में आचार्य चाणक्य का महत्वपूर्ण स्थान है। एक समय जब भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था और विदेशी शासक सिकंदर भारत पर आक्रमण करने के लिए भारतीय सीमा तक आ पहुंचा था, तब चाणक्य ने अपनी नीतियों से भारत की रक्षा की थी। चाणक्य ने अपने प्रयासों और अपनी नीतियों के बल पर एक सामान्य बालक चंद्रगुप्त को भारत का सम्राट बनाया जो आगे चलकर चंद्रगुप्त मौर्य के नाम से प्रसिद्ध हुए और अखंड भारत का निर्माण किया।
चाणक्य के काल में पाटलीपुत्र (वर्तमान में पटना) बहुत शक्तिशाली राज्य मगध की राजधानी था। उस समय नंदवंश का साम्राज्य था और राजा था धनानंद। कुछ लोग इस राजा का नाम महानंद भी बताते हैं। एक बार महानंद ने भरी सभा में चाणक्य का अपमान किया था और इसी अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए आचार्य ने चंद्रगुप्त को युद्धकला में पारंपत किया। चंद्रगुप्त की मदद से चाणक्य ने मगध पर आक्रमण किया और महानंद को पराजित किया।
आचार्य चाणक्य की नीतियां आज भी हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं। जो भी व्यक्ति नीतियों का पालन करता है, उसे जीवन में सभी सुख-सुविधाएं और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
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