आचार्य चाणक्य ने तीन प्रकार के ऐसे लोग बताए हैं जिनसे किसी भी प्रकार का व्यवहार करने पर दुख ही प्राप्त है। अत: इन लोगों से हमेशा दूर रहना ही बुद्धिमानी है।
चाणक्य कहते हैं-
मूर्खाशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च।
दु:खिते सम्प्रयोगेण पंडितोऽप्यवसीदति।।
इस श्लोक का अर्थ है कि मूर्ख शिष्य को उपदेश देने पर, किसी व्यभिचारिणी स्त्री का भरण-पोषण करने पर और दुखी व्यक्तियों के साथ किसी भी प्रकार का व्यवहार करने पर दुख ही प्राप्त होता है।
आचार्य कहते हैं कि किसी भी मूर्ख शिष्य या विद्यार्थी को शिक्षा देने का कोई लाभ नहीं है। मूर्ख शिष्य को कितना ही समझाया जाए लेकिन शिक्षक को अंत में दुख ही प्राप्त होता है। किसी कर्कशा, दुष्ट, बुरे स्वभाव वाली, व्यभिचारिणी स्त्री का भरण-पोषण करने वाले व्यक्ति को कभी भी सुख प्राप्त नहीं होता है। ऐसी स्त्रियों का चाहे जितना भी अच्छा किया जाए अंत में व्यक्ति को दुख ही भोगना पड़ता है। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति दुखी है, विभिन्न रोगों से ग्रस्त है तो उनसे किसी भी प्रकार का व्यवहार करने वाले व्यक्ति को रोग होने की संभावनाएं रहती हैं। अत: इन तीन प्रकार के लोगों से दूर ही रहना चाहिए।
कौन थे आचार्य चाणक्य
भारत के इतिहास में आचार्य चाणक्य का महत्वपूर्ण स्थान है। एक समय जब भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था और विदेशी शासक सिकंदर भारत पर आक्रमण करने के लिए भारतीय सीमा तक आ पहुंचा था, तब चाणक्य ने अपनी नीतियों से भारत की रक्षा की थी। चाणक्य ने अपने प्रयासों और अपनी नीतियों के बल पर एक सामान्य बालक चंद्रगुप्त को भारत का सम्राट बनाया जो आगे चलकर चंद्रगुप्त मौर्य के नाम से प्रसिद्ध हुए और अखंड भारत का निर्माण किया।
चाणक्य के काल में पाटलीपुत्र (वर्तमान में पटना) बहुत शक्तिशाली राज्य मगध की राजधानी था। उस समय नंदवंश का साम्राज्य था और राजा था धनानंद। कुछ लोग इस राजा का नाम महानंद भी बताते हैं। एक बार महानंद ने भरी सभा में चाणक्य का अपमान किया था और इसी अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए आचार्य ने चंद्रगुप्त को युद्धकला में पारंपत किया। चंद्रगुप्त की मदद से चाणक्य ने मगध पर आक्रमण किया और महानंद को पराजित किया।
आचार्य चाणक्य की नीतियां आज भी हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं। जो भी व्यक्ति नीतियों का पालन करता है, उसे जीवन में सभी सुख-सुविधाएं और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
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