पुराने समय से ही कहावत चली आ रही है कि स्त्रियों का स्वभाव कोई समझ नहीं सकता है। कई विद्वानों ने स्त्रियों के स्वभाव को समझने के लिए कई नीतियां बताई हैं। इन विद्वानों में आचार्य चाणक्य का नाम भी शामिल है। चाणक्य ने स्त्रियों के विषय कई नीतियां बताई हैं। आचार्य ने एक नीति में बताया है कि पुरुष की तुलना में स्त्री अधिक दुस्साहसी होती हैं और इसी कारण वे कोई भी काम कर सकती हैं। यह भी एक बुराई है। इस बुराई के कारण दूसरों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। अत: इस संबंध में सावधान रहना चाहिए। यहां जानिए इस चाणक्य नीति से जुड़ी खास बातें…
आचार्य कहते हैं-
कवय: किं न पश्यन्ति किं न कुर्वन्ति योषित:।
मद्यपा किं न जल्पन्ति किं न खादन्ति वायसा:।।
कवि कुछ भी देख सकता है
इस श्लोक में चाणक्य कहते हैं कि कवि की सोच कहीं भी पहुंच सकती है। कवि सब कुछ देख सकता है। एक कहावत भी है जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि। यानी जहां सूर्य की रोशनी भी नहीं पहुंच सकती है, वहां कवि की सोच पहुंच जाती है। कवि जो कुछ भी दुर्लभ स्थितियां देखता है, उसे कविताओं के माध्यम से व्यक्त कर देता है। अत: कवि के बैर नहीं लेना चाहिए, सावधान रहना चाहिए।
स्त्रियां दुस्साहस के कारण कुछ भी कर सकती हैं
चाणक्य कहते हैं कि पुरुषों की तुलना में अधिकतर स्त्रियां अधिक दुस्साहसी होती हैं। वे इस दुस्साहस के कारण कई बार ऐसे काम भी कर देती हैं, जिनके विषय में कोई पुरुष सोच भी नहीं सकता है। सामान्यत: पुरुष कोई भी जोखिम भरा काम करने से पहले कई बार सोचते हैं, जबकि अधिकांश स्त्रियां दुस्साहस के कारण कुछ भी काम बिना सोचे-समझे ही कर बैठती हैं। हालांकि इस दुस्साहस के कारण स्त्रियों को कई बार परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। दुस्साहस भी एक बुराई है और इससे बचने का प्रयास करना चाहिए। कुछ भी काम करने से पहले पूरी तरह सोच-विचार कर लेना चाहिए। पुरुषों को इस संबंध में स्त्रियों से हमेशा सावधान रहना चाहिए।
शराबी कुछ भी बक सकते हैं
नशा, किसी भी इंसान की सोचने-समझने की शक्ति को खत्म कर देता है। जब तक व्यक्ति नशे की हालत में होता है, वह कुछ भी सोच नहीं पाता है। सही-गलत पहचान नहीं पाता है। आमतौर पर जब शराब का नशा हद से अधिक हो जाता है तो नशा करने वाला व्यक्ति सारी मर्यादाएं भूल जाता है और उसके मन में जो आता है वह बक देता है, बोल देता है। नशे की हालत में व्यक्ति को मारने पर भी उसकी बोली बंद नहीं होती है। अत: नशा करने वाले व्यक्ति से दूर ही रहना चाहिए।
कौएं कुछ भी खा सकते हैं
इस नीति के अंत में चाणक्य ने बताया है कि कौएं का भी ऐसा ही कुछ स्वभाव होता है। कौएं में भी सोचने-समझने की प्रवृत्ति नहीं होती है। कौआं यह समझ नहीं पाता है कि उसे क्या खाना है और क्या नहीं। यह पक्षी कुछ भी चीज खा लेता है। इस पक्षी में धैर्य की भी कमी होती है। कौएं के स्वभाव से यह सीखना चाहिए कि हमें खान-पान के संबंध में विशेष ध्यान रखना चाहिए। जो चीजों नुकसानदायक हैं, अशुद्ध हैं, उन्हें खाने से बचना चाहिए। आज के समय में खान-पान की अशुद्धता के कारण व्यक्ति बहुत ही जल्दी कई प्रकार की बीमारियों की चपेट में आ जाता है। साथ ही, यह भी ध्यान रखें कि किसी भी परिस्थिति में धैर्य नहीं खोना चाहिए। विपरीत परिस्थितियों में धैर्य ही काम आता है।
कौन थे आचार्य चाणक्य
भारत के इतिहास में आचार्य चाणक्य का महत्वपूर्ण स्थान है। एक समय जब भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था और विदेशी शासक सिकंदर भारत पर आक्रमण करने के लिए भारतीय सीमा तक आ पहुंचा था, तब चाणक्य ने अपनी नीतियों से भारत की रक्षा की थी। चाणक्य ने अपने प्रयासों और अपनी नीतियों के बल पर एक सामान्य बालक चंद्रगुप्त को भारत का सम्राट बनाया जो आगे चलकर चंद्रगुप्त मौर्य के नाम से प्रसिद्ध हुए और अखंड भारत का निर्माण किया।
चाणक्य के काल में पाटलीपुत्र (वर्तमान में पटना) बहुत शक्तिशाली राज्य मगध की राजधानी था। उस समय नंदवंश का साम्राज्य था और राजा था धनानंद। कुछ लोग इस राजा का नाम महानंद भी बताते हैं। एक बार महानंद ने भरी सभा में चाणक्य का अपमान किया था और इसी अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए आचार्य ने चंद्रगुप्त को युद्धकला में पारंपत किया। चंद्रगुप्त की मदद से चाणक्य ने मगध पर आक्रमण किया और महानंद को पराजित किया।
आचार्य चाणक्य की नीतियां आज भी हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं। जो भी व्यक्ति नीतियों का पालन करता है, उसे जीवन में सभी सुख-सुविधाएं और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
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