Varuthini Ekadashi Vrat Katha in Hindi, Vrat Vidhi, Pujan Vidhi, Varuthini Ekadashi Ki Kahani | वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में इस पुण्य व्रत को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।यह सौभाग्य प्रदान करने वाली है। इस व्रत में भगवान विष्णु के वराह अवतार की पूजा करनी चाहिए। ‘वरुथिनी’ शब्द संस्कृत भाषा के ‘वरुथिन’ से बना है, जिसका मतलब है- प्रतिरक्षक, कवच या रक्षा करने वाला। चूंकि यह एकादशी व्रत भक्तों की हर कष्ट और संकट से रक्षा करता है, इसलिए इसे वरुथिनी ग्यारस या वरुथिनी एकादशी कहा जाता हैं।
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वरुथिनी एकादशी व्रत विधि | Varuthini Ekadasi Vrat Vidhi
वैशाख मास के कृ्ष्ण पक्ष की वरुथिनी एकादशी का व्रत करने के लिये, उपवासक को दशमी तिथि के दिन से ही एकादशी व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। व्रत-पालन में दशमी तिथि की रात्रि में ही सात्विक भोजन करना चाहिए और भोजन में मासं-मूंग दाल और चने, जौ, गेहूं का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त भोजन में नमक का प्रयोग भी नहीं होना चाहिए। तथा शयन के लिये भी भूमि का प्रयोग ही करना चाहिए। भूमि शयन भी अगर श्री विष्णु की प्रतिमा के निकट हों तो और भी अधिक शुभ रहता है। इस व्रत की अवधि 24 घंटों से भी कुछ अधिक हो सकती है। यह व्रत दशमी तिथि की रात्रि के भोजन करने के बाद शुरु हो जाता है, और इस व्रत का समापन द्वादशी तिथि के दिन प्रात:काल में ब्राह्माणों को दान आदि करने के बाद ही समाप्त होता है।
वरुथिनी एकादशी व्रत करने के लिए व्यक्ति को प्रात: उठकर, नित्यक्रम क्रियाओं से मुक्त होने के बाद, स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लेना होता है। स्नान करने के लिये एकादशी व्रत में जिन वस्तुओं का पूजन किया जाता है, उन वस्तुओं से बने लेप से स्नान करना शुभ होता है। इसमें आंवले का लेप, मिट्टी आदि और तिल का प्रयोग किया जा सकता है। प्रात: व्रत का संकल्प लेने के बाद श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है। पूजा करने के लिये धान्य का ढेर रखकर उस पर मिट्टी या तांबे का घडा रखा जाता है। घडे पर लाल रंग का वस्त्र बांधकर, उसपर भगवान श्री विष्णु जी की पूजा, धूप, दीप और पुष्प से की जाती है।
वरुथिनी एकादशी व्रत कथा | Varuthini Ekadashi Vrat Katha in Hindi
प्राचीन समय में नर्मदा तट पर मान्धाता नामक राजा रहता था। राजकाज करते हुए भी वह अत्यन्त दानशील और तपस्वी था। एक दिन जब वह तपस्या कर रहा था। उसी समय एक जंगली भालू आकर उसका पैर चबाने लगा। थोडी देर बाद वह राजा को घसीट कर वन में ले गया। तब राजा ने घबडाकर, तपस्या धर्म के अनुकुल क्रोध न करके भगवान श्री विष्णु से प्रार्थना की। भक्त जनों की बाद शीघ्र सुनने वाले श्री विष्णु वहां प्रकट हुए़। तथा भालू को चक्र से मार डाला। राजा का पैर भालू खा चुका था। इससे राजा बहुत ही शोकाकुल था। विष्णु जी ने उसको दु:खी देखकर कहा कि हे वत्स, मथुरा में जाकर तुम मेरी वाराह अवतार मूर्ति की पूजा वरुथिनी एकादशी का व्रत करके करों, इसके प्रभाव से तुम पुन: अंगों वाले हो जाओगें। भालू ने तुम्हारा जो अंग काटा है, वह अंग भी ठिक हो जायेगा। यह तुम्हारा पैर पूर्वजन्म के अपराध के कारण हुआ है. राजा ने इस व्रत को पूरी श्रद्वा से किया और वह फिर से सुन्दर अंगों वाला हो गया।
व्रत के दिन ध्यान रखने योग्य बातें
वरुथिनी एकादशि का व्रत करने वाले को दशमी के दिन से निम्नलिखित दस वस्तुओं का त्याग करना चाहिए –
- कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए।
- मांस नहीं खाना चाहिए।
- मसूर की दान नहीं खानी चाहिए।
- चना नहीं खाना चाहिए।
- करोदें नहीं खाने चाहिए।
- शाक नहीं खाना चाहिए।
- मधु नहीं खाना चाहिए।
- दूसरे से मांग कर अन्न नहीं खाना चाहिए।
- दूसरी बार भोजन नहीं करना चाहिए।
- वैवाहिक जीवन में संयम से काम लेना चाहिए।
वरुथिनी एकादशी व्रत महत्व | Importance of Varuthini Ekadashi Vrat
वरुथिनी एकादशी व्रत को करने से दु:खी व्यक्ति को सुख मिलते है। राजा के लिये स्वर्ग के मार्ग खुल जाते है। इस व्रत का फल सूर्य ग्रहण के समय दान करने से जो फल प्राप्त होता है, वही फल इस व्रत को करने से प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से मनुष्य लोक और परलोग दोनों में सुख पाता है और अंत समय में स्वर्ग जाता है। शास्त्रों में कहा गया है, कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को हाथी के दान और भूमि के दान करने से अधिक शुभ फलों की प्राप्ति होती है। सभी दानों में सबसे उतम तिलों का दान कहा गया है। तिल दान से श्रेष्ठ स्वर्ण दान कहा गया है और स्वर्ण दान से भी अधिक शुभ इस एकादशी का व्रत करने का उपरान्त जो फल प्राप्त होता है, वह कहा गया है।
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