8 Holy Mountain of India : आज हम आपको भारत के उन पर्वतों के बारे में बता रहे हैं, जो बहुत ही पवित्र हैं तथा जिन पर देवताओं का वास माना जाता है। हिंदू धर्म को मानने वाले इन पर्वतों की पूजा करते हैं और भगवान के समान ही मानते हैं। इनमें से हर पर्वत से जुड़ी कुछ खास मान्यताएं भी हैं। भारत के इन पवित्र पर्वतों तथा इनसे जुड़ी मान्यताओं की जानकारी इस प्रकार हैं-
1. हिमालय पर्वत (Himalaya Parvat)-
हिमालय भारत के सबसे पवित्र पर्वतों में से एक है। हिमालय की श्रृंखलाओं में अनेक धार्मिक स्थल भी हैं। इनमें हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गोमुख, देव प्रयाग, ऋषिकेश, कैलाश मानसरोवर तथा अमरनाथ प्रमुख हैं। भारतीय ग्रंथ गीता में भी इसका उल्लेख मिलता है। महाभारत के अनुसार पांडव इसी पर्वत को पार कर स्वर्ग गए थे। पुराणों में इसे पार्वतीजी का पिता कहा गया है। पुराणों के अनुसार गंगा और पार्वती इनकी दो पुत्रियां हैं और मैनाक, सप्तश्रृंग आदि सौ पुत्र हैं।
भौगोलिक दृष्टि से हिमालय एक पर्वत तंत्र है, जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। यह पर्वत तंत्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियों- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2500 किमी की लंबाई में फैली हैं।
हिमालय पर्वत पांच देशों की सीमाओं में फैला है। ये देश हैं- पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान और चीन। हिमालय पर्वत की एक चोटी का नाम बन्दरपुंछ है। यह चोटी उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है। इसकी ऊंचाई 20,731 फुट है। इसे सुमेरु भी कहते हैं।
2. विंध्याचल पर्वत (Vindhyachal parvat)-
यह भारत के पवित्र पर्वतों में से एक है। विंध्याचल पर्वत शृंखला भारत के पश्चिम-मध्य में स्थित प्राचीन गोलाकार पर्वतों की श्रृंखला है जो भारत उपखंड को उत्तरी भारत व दक्षिणी भारत में बांटती है। इस श्रृंखला का पश्चिमी अंत गुजरात में पूर्व में वर्तमान राजस्थान व मध्य प्रदेश की सीमाओं के नजदीक है। यह श्रृंखला भारत के मध्य से होते हुए पूर्व व उत्तर से होते हुए मिर्जापुर में गंगा नदी तक जाती है।
पुराणों के अनुसार इस पर्वत ने सुमेरू से ईर्ष्या रखने के कारण सूर्यदेव का मार्ग रोक दिया था और आकाश तक बढ़ गया था, जिसे अगस्त्य ऋषि ने नीचे किया। यह शरभंग, अगस्त्य इत्यादि अनेक श्रेष्ठ ऋषियों की तपोस्थली रहा है। हिमाचल के समान इसका भी धर्मग्रंथों एवं पुराणों में विस्तृत उल्लेख मिलता है।
3. माउंट आबू (Mount abu)-
माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र पहाड़ी नगर है। सिरोही जिले में स्थित नीलगिरि की पहाडिय़ों की सबसे ऊंची चोटी पर बसे माउंट आबू की भौगोलिक स्थिति और वातावरण राजस्थान के अन्य शहरों से बहुत अलग है। यह समुद्र तल से 1220 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। माउंट आबू हिंदू और जैन धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है। यहां के ऐतिहासिक मंदिर और प्राकृतिक खूबसूरती सैलानियों को अपनी ओर खींचती है।
माउंट आबू प्राचीन काल से ही साधु संतों का निवास स्थान रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार हिंदू धर्म के तैंतीस करोड़ देवी-देवता इस पर्वत पर भ्रमण करते हैं। जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर भी यहां आए थे। उसके बाद से माउंट आबू जैन अनुयायियों के लिए एक पवित्र और पूजनीय तीर्थस्थल बना हुआ है। माउंट आबू में ही दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है जहाँ शिवजी के पैर के अंगूठे की पूजा होती है।
4. गोवर्धन पर्वत (Govardhan parvat)-
गोवर्धन उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित एक पवित्र पर्वत है। यह भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थली है। यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिये गोवर्धन पर्वत अपनी तर्जनी अंगुली पर उठाया था। गोवर्धन पर्वत को भक्तजन गिरिराजजी भी कहते हैं। यहां दूर-दूर से भक्तजन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने आते हैं। यह परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की है।
यहां लोग दण्डौती परिक्रमा करते हैं। दण्डौती परिक्रमा इस प्रकार की जाती है कि आगे हाथ फैलाकर जमीन पर लेट जाते हैं और जहां तक हाथ फैलते हैं, वहां तक लकीर खींचकर फिर उसके आगे लेटते हैं। इसी प्रकार लेटते-लेटते या साष्टांग दण्डवत करते-करते परिक्रमा करते हैं, जो एक सप्ताह से लेकर दो सप्ताह में पूरी होती है। परिक्रमा जहां से शुरू होती है वहीं एक प्रसिद्ध मंदिर भी है, जिसे दानघाटी मंदिर कहा जाता है ।
5. कैलाश पर्वत (Kailash Parvat)-
कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है। इसके पश्चिम तथा दक्षिण में मानसरोवर तथा रक्षातल झील हैं। यहां से कई महत्वपूर्ण नदियां निकलतीं हैं – ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलुज इत्यादि। हिंदू धर्म में इस पर्वत को बहुत ही पवित्र माना गया है। इस पर्वत को गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं। पुराणों के अनुसार भगवान अनेक देवताओं, राक्षसों व ऋषियों ने इस पर्वत पर तप किया है। जनश्रुति है कि आदि शंकराचार्य ने इसी पर्वत के आसपास शरीर त्यागा था।
जैन धर्म में भी इस पर्वत का विशेष महत्व है। वे कैलाश को अष्टापद कहते हैं। कहा जाता है कि प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया था। इसे पृथ्वी स्थित स्वर्ग कहा गया है। कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है और ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। इस शिखर की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है।
6. चामुंडा पहाड़ी (Chamunda pahadi)-
चामुंडा पहाड़ी मैसूर का एक प्रमुख पर्यटक स्थल है। यह मैसूर से लगभग 13 किमी दक्षिण में स्थित है। इस पहाड़ी की चोटी पर चामुंडेश्वरी मंदिर है, जो देवी दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर देवी दुर्गा की राक्षस महिषासुर पर विजय का प्रतीक है। मंदिर मुख्य गर्भगृह में स्थापित देवी की प्रतिमा शुद्ध सोने की बनी हुई है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया था।
मंदिर की इमारत सात मंजिला है जिसकी ऊंचाई 40 मी. है। मुख्य मंदिर के पीछे महाबलेश्वर को समर्पित एक छोटा सा मंदिर भी है जो 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है। पहाड़ की चोटी से मैसूर का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है। मंदिर के पास ही महिषासुर की विशाल प्रतिमा रखी हुई है।
7. गब्बर पर्वत (Gabbar parvat)-
गब्बर पर्वत भारत के गुजरात में बनासकांठा जिला स्थित एक छोटा सा पहाड़ी टीला है। यह प्रसिद्ध तीर्थ अम्बाजी से मात्र 5 कि.मी की दूरी पर गुजरात एवं राजस्थान की सीमा पर स्थित है। यहीं से अरासुर पर्वत पर अरावली पर्वत से दक्षिण पश्चिम दिशा में पवित्र वैदिक नदी सरस्वती का उद्गम भी होता है।
यह प्राचीन पौराणिक 51 शक्तिपीठों में से एक गिना जाता है। पुराणों के अनुसार यहां सती शव का हृदय भाग गिरा था। इसका वर्णन तंत्र चूड़ामणि में भी मिलता है। मंदिर तक पहुंचने के लिये पहाड़ी पर 999 सीढिय़ां चढ़नी पड़ती हैं। पहाड़ी के ऊपर से सूर्यास्त देखने के अनुभव भी बेहतरीन होता है।
8. पारसनाथ पहाड़ी (Parasnath pahari)-
पारसनाथ पहाड़ी झारखंड राज्य के बोकारो शहर में स्थित है। बोकारो में कई पर्यटन स्थल हैं, जिनमें से पारसनाथ पहाड़ी भी एक है। झारखंड राज्य की यह सबसे ऊंची पहाड़ी है। गिरिडीह स्थित इस पहाड़ी की ऊंचाई लगभग 4,440 फीट है। ये पूरी पहाड़ी जंगल से घिरी हुई है। इस पहाड़ पर जैन धर्म का सबसे प्रमुख धार्मिक स्थल है।
पहाड़ के शिखर पर जैन धर्म के 20 तीर्थंकरों के चरण चिह्न अंकित हैं। इस पहाड़ी को सम्मेद शिखर कहा जाता है। तीर्थंकरों के चरण चिह्नों को टोंक कहा जाता है। मान्यता है कि यहां जैनियों के 20वें से 24वें तीर्थंकरों ने निर्वाण प्राप्त किया था। यहां जैन धर्म के श्वेतांबर और दिगंबर दोनों ही पंथों के मंदिर बने हुए हैं। यह स्थान मधुबन के नाम से भी विख्यात है।
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