Story Of Kaha Raja Bhoj Kaha Gangu Teli | इस कहावत को फिल्मी गाने में भी पिरोया गया। यही नहीं, तंज कसने के लिए भी इस कहावत का प्रयोग किया जाता हैं। कहावत लोकप्रिय है। ह ऐसी है कि आम बोलचाल में कहीं न कहीं सभी के जुबान से निकल ही जाती है। लेकिन इस कहावत की कहानी की सत्यता क्या है ?? हम इस पर प्रकाश डालेंगे।
मध्यप्रदेश के भोपाल से करीब ढ़ाई सौ किलोमीटर दूर धार जिला ही राजा भोज की “धारानगरी” कहां जाता है। 11 वीं सदी में ये शहर मालवा की राजधानी रह चुका है और जिस राजा भोज ने इस नगरी को बसाया उस राजा की प्रशंसा करते आज तक बड़े बड़े विद्वान् ही नहीं राजा महाराजा और सामान्य जन भी करते आ रहे हैं।
राजा भोज के प्रशंसकों की देश-विदेश में कमी नहीं है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी राजा भोज शस्त्रों के ही नहीं बल्कि शास्त्रों के भी ज्ञाता थे। उन्होंने वास्तुशास्त्र, व्याकरण, आयुर्वेद, योग, साहित्य और धर्म पर कई ग्रंथ और टीकाएँ लिखे। जो विद्वज्जनों से तिरोहित नही है।
कहा जाता है कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को एक जमाने में “भोजपाल” कहा जाता था और बाद में इसका “ज” गायब होकर ही इसका नाम “भोपाल” पड़ गया | वीआईपी रोड से भोपाल शहर में प्रवेश करते ही राजा भोज की एक विशाल मूर्ति के दर्शन होते हैं |
11 वीं सदी में अपने 40 साल के शासन काल में महाराज भोज ने कई मंदिरों और इमारतों का निर्माण करवाया उसी में से एक है भोजशाला। हा जाता है कि राजा भोज सरस्वती के उपासक थे और उन्होंने भोजशाला में सरस्वती की एक प्रतिमा भी स्थापित कराई थी जो आज लंदन में मौजूद है।
“गंगू तेली नहीं अपितु गांगेय तैलंग”
राजा भोज ने भोजशाला तो बनाई ही मगर वो आज भी जन जन में जाने जाते हैं एक कहावत के रूप में- “कहां राजा भोज कहां गंगू तेली“ । किन्तु इस कहावत में गंगू तेली नहीं अपितु “गांगेय तैलंग” हैं। गंगू अर्थात् गांगेय कलचुरि नरेश और तेली अर्थात् चालुका नरेश तैलय दोनों मिलकर भी राजा भोज को नहीं हरा पाए थे।
ये दक्षिण के राजा थे। और इन्होंने धार नगरी पर आक्रमण किया था मगर मुंह की खानी पड़ी तो धार के लोगों ने ही हंसी उड़ाई कि “कहां राजा भोज कहां गांगेय तैलंग” । गांगेय तैलंग का ही विकृत रूप है “गंगू तेली” । जो आज “कहां राजा भोज कहां गंगू तेली“ रूप में प्रसिद्ध है ।
धार शहर में पहाड़ी पर तेली की लाट रखी हैं. कहा जाता है कि राजा भोज पर हमला करने आए तेलंगाना के राजा इन लोहे की लाट को यहीं छोड़ गए और इसलिए इन्हें तेली की लाट कहा जाता है।
“कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली” कहावत का यही असली रहस्य हैं । इसी पर चल पड़ी थी यह कहावत।
आचार्य, डा.अजय दीक्षित
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irshad says
ji aapne bhut achchhi jankariya btayi hai is post ke madhym se dhanywad aapka
संजय कुमार शुक्ल says
बहुत अच्छी व रोचक कहानी, धन्यवाद।
Vikram says
bahut hi badhiya lekh tha sir..padhkar kaafi maza bhi aaya aur achhi jaankari bhi mili. Thank you very much.