जानिए, रामायण हमारे शरीर में हर समय होती है घटित | Janiye Ramayan Hmare Sharir Me Har Samay Hoti Hai Ghatit – राम नवमी का पर्व भारत में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। रामनवमी के दिन ही चैत्र नवरात्र की समाप्ति भी हो जाती है। हिंदु धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था अत: इस शुभ तिथि को भक्त लोग रामनवमी के रूप में मनाते हैं एवं पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य के भागीदार होते है। आइये अब जानते है श्री राम और रामायण का सार (Summary of Ramayana) जो हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करता है –
Summary of Ramayana
राम नवमी, भगवान श्री राम के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। हर्ष एवं उल्लास के इस पर्व के मनाए जाने का उद्देश्य है – हमारे भीतर “ज्ञान के प्रकाश का उदय”। भगवान राम का जन्म राजा दशरथ और रानी कौशल्या के यहाँ चैत्र शुक्ल की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में हुआ था।
रामायण के मुख्य पात्रों के नामो का अर्थ
कौशल्या का अर्थ है, कुशलता और
दशरथ का मतलब है, जिसके पास दस रथ हो।
हमारे शरीर में १० अंग हैं, पाच ज्ञानेन्द्रियाँ (पाच इन्द्रियों के लिए) और पांच कर्मेन्द्रिया (जो की दो हाथ, दो पैर, जननेन्द्रिय, उत्सर्जन अंग और मुह)।
सुमित्रा का अर्थ है, जो सब के साथ मैत्रीय भाव रखे और
कैकयी का अर्थ है, जो बिना के स्वार्थ के सब को देती रहे।
इस प्रकार दशरथ और उनकी तीन पत्नियाँ एक ऋषि के पास गए। जब ऋषि ने उनको प्रसाद दिया तब ईश्वर की कृपा से, भगवान राम का जन्म हुआ।
भगवान राम का अर्थ है,
राम का अर्थ है, स्वयं का प्रकाश; स्वयं के भीतर ज्योति। “रवि” शब्द का अर्थ “राम” शब्द का पर्यायवाची है। रवि शब्द में ‘र’ का अर्थ है, प्रकाश और “वि” का अर्थ है, विशेष। इसका अर्थ है, हमारे भीतर का शाश्वत प्रकाश। हमारे ह्रदय का प्रकाश ही राम है। इस प्रकार हमारी आत्मा का प्रकाश ही राम है।
लक्ष्मण (भगवन राम के छोटे भ्राता) का अर्थ है, सजगता,
शत्रुघ्न का अर्थ हैं, जिसका कोई शत्रु ना हो या जिसका कोई विरोधी ना हो।
भरत का अर्थ है योग्य।
अयोध्या (जहाँ राम का जन्म हुआ है) का अर्थ है, वह स्थान जिसे नष्ट ना किया जा सके।
रामायण का सार | Summary of Ramayana
इस कहानी का सार है: हमारा शरीर अयोध्या है, पांच इन्द्रियां और पांच कर्मेन्द्रियाँ इस के राजा हैं। कौशल्या, इस शरीर की रानी है। सभी इन्द्रियां ब्राह्य मुखी हैं और बहुत कुशलता से इन्हें भीतर लाया जा सकता है और ये तभी हो सकता हैं जब भगवन राम, प्रकाश हम में जन्म लें।
जब मन (सीता) अहंकार (रावण) के द्वारा अपहृत हो जाता है, तो दिव्य प्रकाश और सजगता (लक्षमण) के माध्यम भगवन हनुमान (प्राण के प्रतीक) के कंधो पर चढ़कर उसे घर वापस लाया जा सकता है। ये रामायण हमारे शरीर में हर समय घटित होती रहती है।
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