Hindi Diwas, Essay, Speech, Article, Lekh, In Hindi | हिंदी दिवस पर विशेष लेख- भाषा, भावों की अभिव्यक्ति का श्रेष्ठतम माध्यम है। इसी के माध्यम से हम अपने विचारों को संप्रेषित कर पाते हैं। भाषा नहीं हो तो विचारों का प्रकटीकरण संभव नहीं है। भाषा ही तो सब कुछ है। इसलिए इतिहास के सजीव पृष्ठों पर भाषा के माध्यम से सत्य का उत्स है। इसी कारण विश्व की पराजित भाषाएँ अपनी-अपनी देशी अस्मिता बनाए रखने के लिए संघर्ष करती दिखाई दे रही हैं। इस संघर्ष की छटपटाहट को विश्व के अनेकों छोटे-छोटे देशों में देखा जा सकता है।
अपने देश के स्वतंत्रा संग्राम, स्वाधीनता आंदोलन का आधार हिंदी भाषा थी। हिंदी भाषा के माध्यम से ही इतने महान संग्राम को जीतना संभव हो सका। स्वतंत्र भारत में राम मनोहर लोहिया ने अंग्रेजी हटाओं-हिंदी लाओ के आंदोलन का सूत्रपात किया था। उनके सशक्त प्रयासों के बाद भी दुर्भाग्यवश, भारत को उस औपनिवेशिक शक्तिशाली मानसिकता से मुक्त करना संभव नहीं हो सका; जिसमें अंग्रेजी को जानना ही विद्वता की निशानी माना जाता है।
दुर्भाग्यवश वर्तमान स्तिथि इतनी संवेदनशील है कि भाषा के प्रश्न को गैरराजनीतिक ढंग से सोचना ही संभव नहीं प्रतीत होता है। हिंदी हमारी संस्कृति में रची-बसी है, रगों-रगों में घुली-मिली हुई है। यह एक विशाल समाज की भाषा है। बहुसंख्यक नागरिकों से संपर्क के लिए हिंदी अनिवार्य है। इसलिए अपने देश में एक स्विस बहुराष्ट्रीय कंपनी हिंदी सिखाने का व्यवसाय कर रही है। इसके अतिरिक्त अमेरिका सहित यूरोप के कई देश हिंदी भाषा सीखाने का प्रयास कर रहे है। यही कारण है कि टीवी पर विदेशी चैनल भी हिंदी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। आखिरकार उन्हें अपने उत्पाद के तकनीकी महत्व, जरुरी सूचनाएँ, उत्पादों का विज्ञापन हिंदी भाषी लोगों के बीच में ही करना है। यह हिंदी भाषी की महत्ता को रेखांकित करता है।
हिंदी कई राज्यों की भाषा है, जैसे- मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तराखंड, झारखंड, उत्तरप्रदेश, राजस्थान आदि। इनका प्रशासनिक कार्य हिंदी के माध्यम से ही चलता है। इस सत्य के बावजूद लोगों का अंग्रेजी के प्रति आकर्षण कम होता नज़र नहीं आता है। इसे अंग्रेजी के प्रति विवशता कहें या आकर्षण- आज यह भाषा हिंदी से अधिक सशक्त बन गई है। लोगों को लगता है कि उनका बच्चा यदि अंग्रेजी नहीं जानता है तो फिर वह कितना भी प्रतिभावान क्यों न हो, सफल नहीं हो सकता है। इसलिए शिक्षा के निजी क्षेत्रों में अँग्रेजी माध्यम का स्कूल चलाना एक बेहद लाभकारी व्यवसाय बन चूका है, जिसमें अब बड़े-बड़े उधोगपति भाग ले रहे हैं। इसलिए अँग्रेजी के प्रति यह प्रेम, हिंदी की उपेक्षा को साफ़ दर्शाता है। भारतीय समाज को देखकर शंका होती है कि क्या हम सचमुच हिंदी के समर्थक है या हम ऐसा होने का मात्र आडंबर करते हैं ?
यह सर्वविदित सत्य है कि इतिहास के हर कालखंड में भाषा, सत्ता की मुखापेक्षी रही है। कभी हमारे देश की मुख्य भाषा संस्कृत थी, परंतु जैसे ही वह कालखंड समाप्त हुआ और सत्ता पर मुगलों का अधिकार आया तो फ़ारसी का वर्चस्व बढ़ गया। मैकाले जैसे चतुर चालक कूटनीतिज्ञ ने बड़ी ही चतुराई से षड्यंत्र करके अँग्रेजी को सभ्य एवं सम्मानित लोगों की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। वह यह सिद्ध करने में सफल हो गया की अँग्रेजी जानना सभ्यता की निशानी है और हमारी गुलाम मानसिकता इस षड्यंत्र का पर्दाफाश नहीं कर पाई। इसी का परिणाम आज हमारे सामने है।
अंग्रेजी भाषा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुप्रचारित भाषा है और विश्व भर में भ्रमण, व्यापार, शिक्षा, संचार आदि के क्षेत्र में इसका लाभ मिलता है। अँग्रेजी भाषा उस साम्राज्यवादी बाज़ार की भाषा है, जिसका सारा काम अँग्रेजी के माध्यम से होता है। साम्राज्यवादी अपने उपनिवेशों में अपनी भाषा और संस्कृति को थोपने का प्रयास करते है; क्योंकि उन्हें ज्ञात है कि आधुनिक युग में किसी भी राष्ट्र को शक्ति या सैन्य बल के द्वारा लम्बे समय तक गुलाम नहीं बनाया जा सकता है, परन्तु भाषा एवं संस्कृति की दासता सदियों तक चल सकती है, जैसे कि हमारे देश में अंग्रेजी के प्रति चल रही है। अँग्रेजी का प्रभाव तो अँग्रेजों के रहते भी इतना नहीं था, जितना की स्वतंत्र भारत में दिखाई देता है।
हिंदी हमारी मात्र भाषा है और इस भाषा के प्रति हमारे मन में लगाव होना चाहिए। अपनी भाषा तो भावनात्मक रूप से हमारे दिल में बसनी चाहिए। षड्यंत्र के द्वारा हो सकता है कि थोड़ा-बहुत व्यतिक्रम आ जाए, परन्तु यह स्तिथि देर तक नहीं ठहरने वाली है और न चलने वाली है। इसलिए निकट भविष्य में हिंदी भाषा की अस्मिता को नष्ट कर जिस अँग्रेजी भाषा को वरीयता दी गई है, उसे टूटना ही है। पुनः हिंदी की प्रतिष्ठा होगी और हिंदी की महत्ता बढ़ेगी। यह दैवी विधान है। अतः हमें अभी से हिंदी भाषा को बचाने, उसे समृद्ध करने एवं प्रचारित करने के किए कटिबद्ध हो जाना चाहिए।
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