Anant Chaturdashi | Vrat Katha | Hindi | Story | Kahni | Puja Vidhi | भाद्रपद की शुक्ल चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है और इस दिन अनंत के रूप में श्री हरि विष्णु की पूजा होती है। इस दिन व्रत करने वाले महिलायें और पुरुष अपने हाथ में एक धागा जिसे अंनत राखी कहते है, बांधते है। इस धागे में 14 गांठ होती है जो 14 लोकों को निरूपित करती हैं। पुरुष इस धागे को अपने दाएं हाथ में और महिलाएं अपने बाएं हाथ में बांधती है।
अनन्त चतुर्दशी के दिन ही गणपति-विसर्जन भी होता है जो कि लगातार 10 दिन के गणेश-उत्सव का समापन दिवस होता है और इस दिन भगवान गणपति की उस प्रतिमा को किसी बहते जल वाली नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित किया जाता है, जिसे गणेश चतुर्थी को स्थापित किया गया होता है और गणपति उत्सव के इस अन्तिम दिन को महाराष्ट्र में एक बहुत ही बडे उत्सव की तरह मनाया जाता है।
भविष्य पुराण के अनुसार जुए में पांडव राजपाट हार कर जब जंगल में भटक रहे थे और कई प्रकार के कष्टों को झेल रहे थे तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें अनन्त चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी और उसी व्रत के प्रभाव से पांडव सभी कष्टों से मुक्त हुए और महाभारत के युद्ध में उन्हें विजयी की प्राप्ति हुई थी।
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा | Anant Chaturdashi Vrat Katha
प्राचीन काल में सुमंत नाम का एक नेक तपस्वी ब्राह्मण था। उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उसकी एक परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी। जिसका नाम सुशीला था। सुशीला जब बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई।
पत्नी के मरने के बाद सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया। सुशीला का विवाह ब्राह्मण सुमंत ने कौंडिन्य ऋषि के साथ कर दिया। विदाई में कुछ देने की बात पर कर्कशा ने दामाद को कुछ ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांध कर दे दिए।
कौंडिन्य ऋषि दुखी हो अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम की ओर चल दिए। परंतु रास्ते में ही रात हो गई। वे नदी तट पर संध्या करने लगे।सुशीला के पूछने पर उन्होंने विधिपूर्वक अनंत व्रत की महत्ता बताई। सुशीला ने वहीं उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई।
कौंडिन्य ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उसने सारी बात बता दी। उन्होंने डोरे को तोड़ कर अग्नि में डाल दिया, इससे भगवान अनंत जी का अपमान हुआ। परिणामत: ऋषि कौंडिन्य दुखी रहने लगे। सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई। इस दरिद्रता का उन्होंने अपनी पत्नी से कारण पूछा तो सुशीला ने अनंत भगवान का डोरा जलाने की बात कहीं।
पश्चाताप करते हुए ऋषि कौंडिन्य अनंत डोरे की प्राप्ति के लिए वन में चले गए। वन में कई दिनों तक भटकते-भटकते निराश होकर एक दिन भूमि पर गिर पड़े। तब अनंत भगवान प्रकट होकर बोले- ‘हे कौंडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा। तुम दुखी हुए। अब तुमने पश्चाताप किया है। मैं तुमसे प्रसन्न हूं। अब तुम घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। चौदह वर्षपर्यंत व्रत करने से तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा। तुम धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे। कौंडिन्य ने वैसा ही किया और उन्हें सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गई।’
अनंत चतुर्दशी व्रत विधि | Anant Chaturdashi Puja Vidhi
इस दिन व्रती को प्रातः काल स्नान कर कलश की स्थापना कर कलश पर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना करना चाहिए और फिर शास्त्रानुसार भगवान अनंत के साथ- साथ भगवान विष्णु और विघ्नहर्ता गणेश जी का आवाहन कर उनकी पूजा करनी चाहिए।
अनंत चतुर्दशी का पर्व हिंदू हिन्दुओं के साथ- साथ जैन समाज के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। जैन धर्म के दशलक्षण पर्व का इस दिन समापन होता है। जैन अनुयायी श्रीजी की शोभायात्रा निकालते हैं और भगवान का जलाभिषेक करते हैं।
अनंत चतुर्दशी का महत्व | Importance of Anant Chaturdashi
अनंत चतुर्दशी को भगवान विष्णु का दिन माना जाता है और ऐसी मान्यता भी है कि इस दिन व्रत करने वाला व्रती यदि विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्रम् का पाठ भी करे, तो उसकी वांछित मनोकामना की पूर्ति जरूर होती है और भगवान श्री हरि विष्णु उस प्रार्थना करने वाले व्रती पर प्रसन्न हाेकर उसे सुख, संपदा, धन-धान्य, यश-वैभव, लक्ष्मी, पुत्र आदि सभी प्रकार के सुख प्रदान करते हैं।
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