Interesting Facts About Peacock-Peahen | हम सभी जानते है कि मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। भारत के अलावा म्यांमार का भी राष्ट्रीय पक्षी मोर ही है। साइंस की भाषा में मोर को ‘पावो क्रिस्टेटस’ कहा जाता है। वहीं, अंग्रेजी में इसे पीफाउल और पीकॉक कहते हैं। आज आपको बता रहा है आपको मोर-मोरनी से जुड़े इंटरेस्टिंग बातें (Interesting Facts About Peacock) …
यह भी पढ़े – नर मच्छर नहीं पीते है खून, जानिए मच्छरों से जुडी ऐसी ही रोचक बातें इसलिए बनाया गया राष्ट्रीय पक्षी खूबसूरत रंग-बिरंगे पक्षी मोर को राष्ट्रीय पक्षी इसलिए बनाया गया, क्योंकि पहले यह भारत में ही पाया जाता था। राष्ट्रीय पक्षी के लिए पहले सारस, हंस, ब्राम्हिणी काइट के नामों पर भी विचार किया गया था, लेकिन मोर को ही चुना गया। इसके पीछे कई वजहें मानी जाती हैं। नेशनल बर्ड सिलेक्शन के लिए 1960 में तमिलनाडु राज्य के उधागमंडलम (अब ऊटाकामुंड) में एक मीटिंग की हुई थी। मीटिंग की गाइडलाइन्स के अनुसार, देश के हर हिस्से में पाए जाने वाले पक्षी को नेशनल बर्ड के लिए चुनना जरूरी था। इसके अलावा, आम आदमी उस पक्षी को जानता भी हो और वो भारतीय संस्कृति का हिस्सा हो, इन सब बातों पर मोर ही खरा उतरा। कुछ दिनों के बाद 26 जनवरी 1963 को मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित कर दिया गया।
सहवास को लेकर अलग-अलग मत मोर-मोरनी के सहवास का समय जनवरी से अक्टूबर के बीच में होता है। मोर भी अन्य पक्षियों की तरह की सहवास करता है। मोरनी एक बार में तीन से पांच अंडे देती है। ये अंडे सफेद व पीले होते हैं। मोर सेक्स के दौरान अलग-अलग आवाजों के जरिए मोरनी को आकर्षित करता है। अमेरिकन नेचुरलिस्ट की रिसर्च में छपी रिपोर्ट के मुताबिक बायोलॉजिस्ट ने नर पक्षी की आवाज रिकॉर्ड की है।
हिंदू धर्म में भी मान्य मोर शिष्टता और सुंदरता का प्रतीक है। मोर पंख को मुकुट और सिंहासनों पर लगाया जाता था। मोेर पंख में स्याही भरकर लिखने वाले कवियों ने इसकी महत्ता को बताया है। मोर हिंदू धर्म में खास तौर पर मान्य है। भगवान कृष्ण मोर पंख को माथे पर धारण करते थे। इसके अलावा शिव पुत्र कार्तिकेय का वाहन भी मोर है।
मूल रूप से भारत का पक्षी माना जाता है कि मोर मूल रूप से भारत में पाए जाते थे। सबसे पहले सिकंदर मोरों को भारत से यूनान ले गया था। उसके बाद से दुनिया भर के कई देशों में इसकी अलग-अलग प्रजातियां हो गईं। आज भी मोरों की सबसे सुंदर प्रजातियां भारत में ही पाई जाती हैं।
रात होते ही पेड़ों पर चढ़ जाते हैं मोर खुले मैदानों में और घाटियों में रहना पसंद करते हैं। मोर बहुत ही कम उड़ते हैं। रात होने पर वे पेड़ों पर चढ़ जाते हैं और अलसुबह ही उतर कर खुले मैदानों में आ जाते हैं। मोर अपना घोंसला घनी झाड़ियों के बीच बनाते हैं, जो जमीन पर होती हैं और पत्तियों से ढंकी होती है।
मोर क्या खाते हैं मोर सर्वाहारी होते हैं यानी वे सांप, छिपकली और कई तरह के कीड़े खाते हैं। इसके अलावा अन्न के दाने भी खाते हैं। फसलों के कीड़े-मकोड़े खाकर मोर किसानों की मदद करता है, इसलिए लोगों को पसंद है। जंगल के खतरे का भोंपू भी है मोर। शेर, बाघ, चीता जब शिकार के लिए निकलते हैं तो मोर चिल्लाने लगता है। मोर का नृत्य फेमस है। वो सूमह में धीमी गति का नृत्य करता है। मोर का शिकार भारत में पूरी तरह से बैन है। इसे भारतीय वन्य जीव अधिनियम 1972 के तहत संरक्षण दिया गया है।
मोर का कुनबा एक मोर के कुनबे में 4-5 से मोरनियां होती है। इतनी मोरिनयां एक साल में 20-25 अंडे देती हैं। मोरनियों को आकर्षित करने के लिए मोर धीमे-धीमे नृत्य करते हैं। खासकर बरसात के मौसम में मोर सबसे ज्यादा खुश नजर आते हैं। मोर के नृत्य से प्रभावित होकर मादा मोर नर मोर की तरफ खिंची चली आती हैं। देश में सबसे ज्यादा मोर-मोरनियां राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडु, गुजरात और बंगाल में पाए जाते हैं।
अशोक और शाहजहां के जमाने में भी सम्राट अशोक के जमाने में भी मोर को महत्व हासिल था। चंद्रगुप्त मौर्य के राज्य में प्रचलित सिक्कों की मुद्रा पर एक तरफ मोर का चित्र छपा होता था। मुगल बादशाह शाहजहां मोरकीनुमा तख्त पर बैठता था। हीरे-मोतियों से जड़े इस सिंहासन को ‘तख्त-ए-ताऊस’ कहा गया। बता दें कि अरबी भाषा में मोर को ‘ताऊस’ कहते हैं।
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