Mahabharat Hindi Tips for Talking : घर-परिवार और समाज में हमारी स्थिति कैसी रहेगी ये काफी हद तक हमारी बोली पर ही निर्भर करता है। बोलते समय कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो स्त्री हो या पुरुष, सभी को हर जगह मान-सम्मान मिलता है। यहां जानिए महाभारत में बताया गया एक श्लोक, जिसमें वाणी के संबंध में खास बातें बताई गई हैं…
अव्याहृतं व्याहृताच्छ्रेय आहू: सत्यं वदेद् व्याहृतं तद् द्वितीयम्।
वदेद् व्याहृतं तत् तृतीयं प्रियं धर्मं वदेद् व्याहृतं तच्चतुर्थम्।।
बोली की पहली विशेषता
इस श्लोक में वाणी की चार श्रेष्ठ विशेषताएं बताई गई हैं। इन चार विशेषताओं में एक यह है कि हमें हमेशा सच बोलना चाहिए। झूठ बोलना भी एक पाप है। मान्यता है कि महाभारत में युधिष्ठिर हमेशा सच बोलते थे, इसी कारण उनका रथ जमीन से चार अंगुल (लगभग चार इंच) ऊपर ही चलता था। युद्ध में द्रोणाचार्य को मारने के लिए पांडवों ने षड़यंत्र रचा था। षड़यंत्र के अनुसार भीम ने अश्वथामा नाम के हाथी को मार दिया और भीम जोर-जोर से चिल्लाने लगा कि मैंने अश्वथामा को मार दिया। जब ये बात द्रोणाचार्य ने सुनी तो उन्हें लगा कि उनके पुत्र अश्वथामा को भीम ने मार दिया है।
द्रोणाचार्य जानते थे कि युधिष्ठिर कभी झूठ नहीं बोलते हैं, इसीलिए इस बात की सच्चाई जानने के लिए वे युधिष्ठिर के पास गए। युधिष्ठिर ने द्रोणाचार्य से कहा कि अश्वथामा मारा गया, लेकिन वह हाथी था। जब युधिष्ठिर बोल रहे थे ‘लेकिन वह हाथी था’ उसी समय श्रीकृष्ण ने शंख बजा दिया। जिससे द्रोणाचार्य ने सिर्फ यही सुना कि अश्वथामा मारा गया। यह सुनते द्रोणाचार्य रथ से उतर गए और उसी समय धृष्टधुम्य ने उनका वध कर दिया। इस प्रसंग में युधिष्ठिर में झूठ नहीं बोला, लेकिन झूठ में साथ दिया था। इसी कारण उनका रथ जमीन पर आ गया। एक झूठ के कारण युधिष्ठिर की जीवनभर की सच बोलने की तपस्या टूट गई। हमें भी झूठ बोलने से बचना चाहिए। एक झूठ से अच्छे रिश्ते भी टूट जाते हैं। झूठ कभी ना कभी सामने आ ही जाता है। हमेशा सच बोलना वाणी की एक विशेषता है।
बोली की दूसरी विशेषता
बोली की दूसरी विशेषता यह है कि व्यर्थ बोलने की अपेक्षा चुप रहना श्रेष्ठ होता है। बेकार बातें सुनना कोई पसंद नहीं करता है और जो लोग बकवास करते हैं, उन्हें भी लोग पसंद नहीं करते हैं। इसीलिए फालतू बातें नहीं करना चाहिए। जितना जरूरी हो, उतना ही बोलना चाहिए।
बोली की तीसरी विशेषता
वाणी की तीसरी विशेषता यह है कि हमें हमेशा प्रिय बोलना चाहिए। प्रिय बोलना यानी ऐसी बोली जिससे दूसरों को ठेस न पहुंचे। वाणी में कठोरता नहीं होनी चाहिए। ऐसे शब्दों का उपयोग करना चाहिए, जिनसे दूसरों को सुख मिले।
बोली की चौथी विशेषता
वाणी की चौथी विशेषता यह है कि हमें धर्म सम्मत यानी धर्म के अनुसार जो सही वैसी बातें करना चाहिए। जो लोग धर्म का ज्ञान दूसरों को देते हैं, वे घर-परिवार और समाज में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करते हैं। इस प्रकार हमें झूठ बोलने से बचना चाहिए, व्यर्थ की बात नहीं करना चाहिए, हमेशा प्रिय बोलना चाहिए और धर्म सम्मत बात करनी चाहिए।
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