Jaise Ghunghru Bajte Ho – मनीष नंदवाना ‘चित्रकार’ राजसमंद द्वारा रचित कविता ‘जैसे घुंघरू बजते हो’
‘जैसे घुंघरू बजते हो’ (Jaise Ghunghru Bajte Ho)
बादल ने बूंदें बरसाई|
धरती ने श्रृंगार किया|
बयार मधुर स्वर हो चली|
जैसे घुंघरू बजते हो|1|
कली कली खिल गई|
फूल फूल महक गयें|
मधुप गुंजन कर रहा|
जैसे घुंघरू बजते हो|2|
निर्झर झर झर झरता जल|
कल कल पल पल नदियां का जल|
निर्झर सरिता का बहता जल|
जैसे घुंघरू बजते हो|3|
एकांत निर्जन वन में चल|
शांत होता है मानव मन|
गुंजता झीगुंर छन छन स्वर|
जैसे घुंघरू बजते हो|4|
कभी कभी तू मंदिर जा|
प्रभु चरणों में मन लगा|
घंटी की टन टन को सुन|
जैसे घुंघरू बजते हो|5|
मनीष नंदवाना ‘चित्रकार’
मनीष नंदवाना ‘चित्रकार’ राजसमंद द्वारा रचित रचनाएं-
- रुढ़ कर तुम मुझसे कहां जाओगी
- काह्ना
- कही से महक आई हैं
- जन जन झूम रहा हैं
- ‘मुझे अच्छा लगता हैं’
- ‘भारत पुण्य धरा हैं प्यारी’
- प्रेम गीत – ‘संझा देखो फूल रहीं है’
- मंदिर का आंगन
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