Womens Day Poems in Hindi | Mahila Diwas Par Kavita | महिला दिवस पर कवितायें
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दिलों में बस जाए वो मोहब्बत हूँ,
कभी बहिन, कभी ममता की मूरत हूँ।
मेरे आँचल में हैं से चाँद सितारे,
माँ के क़दमों में बसी एक जन्नत हूँ।
हर दर्द-ओ-ग़म को छुपा लिया सीने में,
लब पे ना आये कभी वो हसरत हूँ।
मेरे होने से ही है यह कायनात जवान,
ज़िन्दगी की बेहद हसीं हकीकत हूँ।
हर रूप रंग में ढल कर सवर जाऊं,
सब्र की मिसाल, हर रिश्ते की ताकत हूँ।
अपने हौसले से तक़दीर को बदल दूँ,
सुन ले ऐ दुनिया, हाँ मैं औरत हूँ।
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ये औरत तुझे क्या कहुँ, तेरी हर बात निराली है
तू एक ऐसा पौधा है जिस घर रहे
वह हरियाली ही हरियाली है
तेरी शान में सिर्फ इतना कह सकते है की
तेरी उचाईयो के सामने आसमान भी नहीं रह सकता है
मेरी सिर्फ इतना सा एक पैगाम है
ऐ औरत तुझे मेरा सिर झुका कर सलाम है
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नारी तुम प्रेम हो आस्था हो,विश्वास हो
टूटी हुई उम्मीदों की एकमात्र आस हो
हर जान का तुम्ही तो आधार हो
नफरत की दुनिया में मात्र तुम्ही प्यार हो
उठो आपने अस्तित्वा को सम्भालो
केवल एक दिन ही नहीं
हर दिन नारी दिवस बना लो
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दुनिया की पहचान है,औरत
दुनिया पर एहसान है औरत
हर घर की जान है औरत
बेटी. माँ ,बहन,भाभी,बनकर
घर घर की शान है औरत
न समझो इसको तुम कमजोर कभी
ये है रिश्तो की डोर
मर्याद और सम्मान है औरत
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Womens Day Poems in Hindi | Mahila Diwas Par Kavita | महिला दिवस पर कवितायें
मैं नारी सदियों से
स्व अस्तित्व की खोज में
फिरती हूँ मारी-मारी
कोई न मुझको माने जन
सब ने समझा व्यक्तिगत धन
जनक के घर में कन्या धन
दान दे मुझको किया अर्पण
जब जन्मी मुझको समझा कर्ज़
दानी बन अपना निभाया फर्ज़
साथ में कुछ उपहार दिए
अपने सब कर्ज़ उतार दिए
सौंप दिया किसी को जीवन
कन्या से बन गई पत्नी धन
समझा जहां पैरों की दासी
अवांछित ज्यों कोई खाना बासी
जब चाहा मुझको अपनाया
मन न माना तो ठुकराया
मेरी चाहत को भुला दिया
कांटों की सेज़ पे सुला दिया
मार दी मेरी हर चाहत
हर क्षण ही होती रही आहत
माँ बनकर जब मैनें जाना
थोडा तो खुद को पहिचाना
फिर भी बन गई मैं मातृ धन
नहीं रहा कोई खुद का जीवन
चलती रही पर पथ अनजाना
बस गुमनामी में खो जाना
कभी आई थी सीता बनकर
पछताई मृगेच्छा कर कर
लांघी क्या इक सीमा मैने
हर युग में मिले मुझको ताने
राधा बनकर मैं ही रोई
भटकी वन वन खोई खोई
कभी पांचाली बनकर रोई
पतियों ने मर्यादा खोई
दांव पे मुझको लगा दिया
अपना छोटापन दिखा दिया
मैं रोती रही चिल्लाती रही
पतिव्रता स्वयं को बताती रही
भरी सभा में बैठे पांच पति
की गई मेरी ऐसी दुर्गति
नहीं किसी का पुरुषत्व जागा
बस मुझ पर ही कलंक लागा
फिर बन आई झांसी रानी
नारी से बन गई मर्दानी
अब गीत मेरे सब गाते हैं
किस्से लिख-लिख के सुनाते हैं
मैने तो उठा लिया बीडा
पर नहीं दिखी मेरी पीडा
न देखा मैनें स्व यौवन
विधवापन में खोया बचपन
न माँ बनी मै माँ बनकर
सोई कांटों की सेज़ जाकर
हर युग ने मुझको तरसाया
भावना ने मुझे मेरी बहकाया
कभी कटु कभी मैं बेचारी
हर युग में मै भटकी नारी
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फूल जैसी कोमल नारी, कांटो जितनी कठोर नारी
अपनो की हिफासत मे सबसे अव्वल नारी
दुखो को दूर कर, खूशियो को समेठे नारी
फिर लोग क्यो कहते तेरा अत्सित्व क्या नारी
जब अपने छोटे छोटे व्खाइशो को जीने लगती नारी
दुनिया दिखाती है उसे उसकी दायरे सारी
अपने धरम मे बन्धी नारी, अपने करम मे बन्धी नारी
अपनो की खूशी के लिये खुद के सपने करती कुुरबान नारी
जब भी सब्र का बाण टूटे तो सब पर भारी नारी
फूल जैसी कोमल नारी, कांटो जितनी कठोर नारी।
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ये किसने कहा की,
नारी कमज़ोर है।
आज भी उसके हाथ में,
अपने घर को चलाने की डोर है।
वो तो दफ्तर भी जाए,
घर भी संभाले।
ऐसे हाल में भी कर दे,
पति अपने बच्चो को भी उसके हवाले।
एक बार उस नारी की ज़िंदगी जीके तो देख,
अपने मर्द होने के घमंड,
में तू बस यू बड़ी बड़ी ना फेक.।
अब हौसला बन तू उस नारी का,
जिसने ज़ुल्म सहके भी तेरा साथ दिया।
तेरी ज़िम्मेदारियों का बोझ भी,
ख़ुशी से तेरे संग बाट लिया।
चाहती तो वो भी कह देती,
मुझसे नहीं होता।
उसके ऐसे कहने पर,
फिर तू ही अपने बोझ के तले रोता।
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धन्य हो तुम माँ सीता,
तुमने नारी का मन जीता।
बढाया था तुमने पहला कदम,
जीवन भर मिला तुम्हें बस गम।
पर नई राह तो दिखला दी,
नारी को आज़ादी सिखला दी।
तोडा था तुमने इक बंधन,
और बदल दिया नारी जीवन।
तुमने ही नव-पथ दिखलाया,
नारी का परिचय करवाया।
तुमने ही दिया नारी को नाम,
हे माँ तुझे मेरा प्रणाम।
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