Lok Devta Baba Ramdev Jayanti | राजस्थान के लोक देवता रामदेव जो की रामसा पीर के नाम से भी प्रसिद्ध है, की जयंती भाद्रपद शुक्ल दशमी को मनाई जाती है। मान्यता है की इस दिन बाबा रामदेव ने जीवित समाधि ली थी। यह समाधी स्थल राजस्थान के जैसलमेर जिले के पोकरण तहसील के रामदेवरा में स्तिथ है।
‘रुणेचा’ रामदेवरा का प्राचीन नाम है। यहाँ लगने वाला मेला राज्य में साम्प्रदायिक सदभाव का प्रतीक माना जाता है क्योंकि रामदेव जी हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के आराध्य देवता माने जाते हैं। रामदेवरा जी की समाधि के निकट ही बीकानेर के महाराजा गंगासिंह द्वारा 1931 में बनवाया गया भव्य मंदिर स्थित हैं। भादों सुदी दो से भादों सुदी ग्यारह तक यहाँ प्रतिवर्ष एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता हैं, जिसमें रामासा पीर के लाखों भक्त पहुँचते है। इस अवसर पर ‘कामड’ जाति की स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला ‘तेरह ताली नृत्य’ विशेष आकर्षण होता हैं। ये लोग रामदेव जी के भोपे होते हैं।
मेले के दौरान बाबा के मंदिर में दर्शन के लिए चार से पांच किलोमीटर लंबी कतारें लगती हैं और जिला प्रशासन के अलावा विभिन्न स्वयंसेवी संगठन दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए निःस्वार्थ भोजन, पानी और स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं। श्रद्धालु पहले जोधपुर में बाबा के गुरु के मसूरिया पहाड़ी स्थित मंदिर में भी दर्शन करना नहीं भूलते।
लोककथाओं के अनुसार बाबा के पिता अजमाल और माता मीनल ने द्वारिका के मंदिर में प्रार्थना कर प्रभु से उन जैसी संतान प्राप्ति की कामना की थी। इसीलिए बाबा रामदेव को कृष्ण का अवतार माना जाता है।
बाबा रामदेव के जन्म की कथा
राजा अजमल जी द्वारकानाथ के परमभक्त होते हुए भी उनको दु:ख था कि इस तंवर कुल की रोशनी के लिये कोई पुत्र नहीं था। दूसरा दु:ख था कि उनके ही राजरू में पड़ने वाले पोकरण से 3 मील उत्तर दिशा में भैरव राक्षस ने परेशान कर रखा था । इस कारण राजा रानी हमेशा उदास ही रहते थे ।
सन्तान ही माता-पिता के जीवन का सुख है । राजा अजमल जी पुत्र प्राप्ति के लिये दान पुण्य करते, साधू सन्तों को भोजन कराते, यज्ञ कराते, नित्य ही द्वारकानाथ की पूजा करते थे । इस प्रकार राजा अजमल जी भैरव राक्षस को मारने का उपाय सोचते हुए द्वारका जी पहुंचे । जहां अजमल जी को भगवान के साक्षात दर्शन हुए, राजा के आखों में आंसू देखकर भगवान में अपने पिताम्बर से आंसू पोछकर कहा, हे भक्तराज रो मत मैं तुम्हारा सारा दु:ख जानता हूँ । मैं तेरी भक्ती देखकर बहुत प्रसन्न हूँ, माँगो क्या चाहिये तुम्हें मैं तेरी हर इच्छायें पूर्ण करूँगा ।
भगवान की असीम कृपा से प्रसन्न होकर बोले हे प्रभु अगर आप मेरी भक्ती से प्रसन्न हैं तो मुझे आपके समान पुत्र चाहिये याने आपको मेरे घर पुत्र बनकर आना पड़ेगा और राक्षस को मारकर धर्म की स्थापना करनी पड़ेगी । तब भगवान द्वारकानाथ ने कहा- हे भक्त! जाओ मैं तुम्हे वचन देता हूँ कि पहले तेरे पुत्र विरमदेव होगा तब अजमल जी बोले हे भगवान एक पुत्र का क्या छोटा और क्या बड़ा तो भगवान ने कहा- दूसरा मैं स्वयं आपके घर आउंगा । अजमल जी बोले हे प्रभू आप मेरे घर आओगे तो हमें क्या मालूम पड़ेगा कि भगवान मेरे धर पधारे हैं, तो द्वारकानाथ ने कहा कि जिस रात मैं घर पर आउंगा उस रात आपके राज्य के जितने भी मंदिर है उसमें अपने आप घंटियां बजने लग जायेगी,महल में जो भी पानी होगा (रसोईघर में) वह दूध बन जाएगा तथा मुख्य द्वार से जन्म स्थान तक कुमकुम के पैर नजर आयेंगे वह मेरी आकाशवाणी भी सुनाई देगी और में अवतार के नाम से प्रसिद्ध हो जाउँगा ।
श्री रामदेव जी का जन्म संवत् 1409 में भाद्र मास की दूज को राजा अजमल जी के घर हुआ । उस समय सभी मंदिरों में घंटियां बजने लगीं, तेज प्रकाश से सारा नगर जगमगाने लगा । महल में जितना भी पानी था वह दूध में बदल गया, महल के मुख्य द्वार से लेकर पालने तक कुम कुम के पैरों के पदचिन्ह बन गए, महल के मंदिर में रखा संख स्वत: बज उठा । उसी समय राजा अजमल जी को भगवान द्वारकानाथ के दिये हुए वचन याद आये और एक बार पुन: द्वारकानाथ की जय बोली । इस प्रकार ने द्वारकानाथ ने राजा अजमल जी के घर अवतार लिया ।
बाबा रामदेव के रामासा पीर बनने की कहानी
बाबा रामदेव मुस्लिम भक्तों में रामासा पीर के नाम से प्रसिद्ध है। बाबा रामदेव के रामासा पीर बनने की कहानी भी बड़ी रोचक है। जब बाबा रामदेव के चमत्कारों के किस्से मक्का तक पहुंचे तो वहां से पांच पीर उनकी परीक्षा लेने राजस्थान आए। पीरों के पहुंचने पर बाबा रामदेव ने उनको खाना खिलाने के लिये आदर सत्कार से बैठाया। जैसे ही खाना डालने लगे तो एक पीर ने कहा कि वो अपना कटोरा मक्का में भूल आए हैं और उसके बिना हम भोजन नहीं कर सकते। रामदेव बाबा ने कहा ठीक है आपको भोजन आपके कोटोरों में ही खिलाया जाएगा। ऐसा कहते ही बाबा ने वहां सभी के कटोरे प्रकट कर दिये। चमत्कार को देख कर सभी पीर उनके आगे नतमस्तक हो गए। पांच पीरों ने बाबा को पीर की उपाधि दी।
श्री रामदेव जी की आरती
पिछम धरां सूं म्हारा पीर जी पधारिया ।
घर अजमल अवतार लियो ।
लाछां सुगणा करे थारी आरती ।
हरजी भाटी चंवर ढोले ।
गंगा जमुना बहे सरस्वती ।
रामदेव बाबो स्नान करे ।
लाछां सुगणा करे…
घिरत मिठाई बाबा चढे थारे चूरमो ।
धूपारी महकार पङे ।
लाछां सुगणा करे…
ढोल नगाङा बाबा नोबत बाजे ।
झालर री झणकार पङे ।
लाछां सुगणा करे…
दूर-दूर सूं आवे थारे जातरो ।
दरगा आगे बाबा नीवण करे ।
लाछां सुगणा करे…
हरी सरणे भाटी हरजी बोले ।
नवों रे खण्डों मे निसान घुरे ।
लाछां सुगणा करे…
जय बाबा रामदेव
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