छठी इंद्री को अंग्रेजी में सिक्स्थ सेंस कहते हैं। सिक्स्थ सेंस एक मानसिक चेतना से जुड़ी प्रक्रिया है। ये वैसे तो दुनिया के लगभग हर व्यक्ति में होती है। इसी के कारण किसी भी इंसान को अपने या परिजनों के साथ होने वाली कुछ घटनाओं का पूर्वाभास हो जाता है। मगर अक्सर बच्चों में बड़ों की तुलना में ये सेंस ज्यादा होता है बड़े होने पर ये कम होता जाता है।
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क्या है सिक्स्थ सेंस (छठी इंद्री) :
मस्तिष्क के भीतर कपाल के नीचे एक छिद्र है, उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं, वहीं से सुषुन्मा रीढ़ से होती हुई मूलाधार तक गई है। सुषुन्मा नाड़ी जुड़ी है सहस्रकार से।
इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दायीं तरफ अर्थात इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर स्थित रहता है। सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अतः जब हमारे दोनों स्वर चलते हैं तो माना जाता है कि सुषम्ना नाड़ी सक्रिय है। इस सक्रियता से ही सिक्स्थ सेंस जाग्रत होता है।
इड़ा, पिंगला और सुषुन्मा के अलावा पूरे शरीर में हजारों नाड़ियाँ होती हैं। उक्त सभी नाड़ियों का शुद्धि और सशक्तिकरण सिर्फ प्राणायाम और आसनों से ही होता है। शुद्धि और सशक्तिकरण के बाद ही उक्त नाड़ियों की शक्ति को जाग्रत किया जा सकता है।
सिक्स्थ सेंस (छठी इंद्री) के जाग्रत होने से क्या होगा :
व्यक्ति में भविष्य में झाँकने की क्षमता का विकास होता है। अतीत में जाकर घटना की सच्चाई का पता लगाया जा सकता है। मीलों दूर बैठे व्यक्ति की बातें सुन सकते हैं। किसके मन में क्या विचार चल रहा है इसका शब्दश: पता लग जाता है। एक ही जगह बैठे हुए दुनिया की किसी भी जगह की जानकारी पल में ही हासिल की जा सकती है। सिक्स्थ सेंस प्राप्त व्यक्ति से कुछ भी छिपा नहीं रह सकता और इसकी क्षमताओं के विकास की संभावनाएँ अनंत हैं। कुछ ही लोगों में ये हमेशा के लिए रहता है यदि आप भी चाहते है कि आपका सिक्स्थ सेंस एक्टिव रहे तो अपनाएं ये तरीका…
सबसे सहज तरीका है मेडिटेशन
सिक्स्थ सेंस एक्टिव करने का सबसे आसान तरीका मेडिटेशन है। रोजाना एक नियत समय पर मेडिटेशन करने से धीरे-धीरे सिक्स्थ सेंस एक्टिव होने लगता है। रोजाना नियम से ऐसा करने पर धीरे-धीरे आपको भूत-भविष्य व वर्तमान में घटने वाली घटनाओं का आभास पहले ही होने लगेगा।
दूसरा तरीका है मंत्र
लगातार एक ही तरंग में मंत्र की साधना करने पर भी सिक्स्थ सेंस एक्टिव हो जाता है। विशेषकर इस मंत्र के जप पर ऊं ठं ठं ठं पंचागुली भूत भविष्यं दर्शय ठं ठं ठं स्वाहा।
तीसरा तरीका त्राटक
इसके अलावा सूर्य या चंद्रमा त्राटक से भी ये संभव है। सूर्य त्राटक में सुबह के समय सूर्य पर ध्यान लगाया जाता है। वहीं चंद्रमा पर ध्यान टिका देना चंद्र त्राटक कहलाता है।
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