Jenabai, Mafia Queens of Mumbai, Story in Hindi : आज भले ही अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहfम भारत समेत पूरी दुनिया के लिए सरदर्द बना है लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब दाऊद और उसका गॉडफादर हाजी मस्तान एक महिला के इशारे पर नाचते थे। आज आपको मुंबई की माफिया क्वीन जेनाबाई दारुवाला के बारे में बताने जा रहा है, जिसका हर आदेश दाऊद के लिए पत्थर की लकीर हुआ करता था।
अंडरवर्ल्ड की रिपोर्टिंग करने वाले जाने माने पत्रकार और लेखक हुसैन जैदी की किताब ‘माफिया क्वींस ऑफ मुंबई’ के मुताबिक 1920 के आरंभिक वर्षों में मुसलमान मेमन हलाई परिवार में पैदा हुई जैनब उर्फ जेनाबाई छह भाई बहनों में से एक थी। यह परिवार मुंबई के डोंगरी इलाके के एक चाल में रहता था। परिवार के गुजर बसर के लिए पिता सवारियां ढोने का काम करता था।
आजादी की लड़ाई में थी शामिल
कहा जाता है कि बीसवीं सदी के तीसरे दशक आने तक वह डोंगरी में आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के आंदोलन में शामिल हुई थी। जेनाबाई जब सिर्फ 14 साल की थी तब उसकी शादी हो गई। शादी के बाद भी वह आंदोलन से जुड़ी रही। उस दौरान किसी हिंदू को कानून या पुलिस से बचा लेने पर उसे अपने पति की मार भी खानी पड़ती थी। 1947 में बंटवारे के दौरान जेनाबाई ने मुंबई छोड़ने से मना कर दिया और इस बात से नाराज उसका पति उसके 5 बच्चों को छोड़कर पाकिस्तान चला गया।
शराब व्यवसाय से जुड़ी
देश की आजादी के बाद मुंबई में अनाज की भारी किल्लत हुई और महाराष्ट्र सरकार ने गरीबों के लिए को सस्ती दरों पर राशन देने का काम शुरू किया। अपना और अपने 5 बच्चों का पेट पालने के लिए जेनाबाई चावल बेचने के धंधे से जुड़ी और यहीं से जेनाबाई ने शुरू किया स्मगलिंग के चावल बेचने का काम। स्मगलरों के संपर्क में आने और चावल के धंधे में नुकसान के बाद दारू के धंधे में आई थी। डोंगरी में वह दारू बनाने और उसे बेचने का धंधा करती थी। पूरे इलाके में उसका सिक्का चलता था और यहीं जेनाबाई के नाम से दारूवालाा जुड़ा और वह बन गई जेनाबाई दारूवाला।
पुलिस की मुखबिर बनी
दारू के धंधे में रहने के दौरान जेनाबाई ने पुलिस संग अच्छे ताल्लुकात बना लिए थे। 1962 में पुलिस ने उसे रंगे हाथों अवैध शराब बेचते गिरफ्तार किया और सामने आया उस दौर का सबसे बड़ा नकली शराब बनाने का कारोबार। सूत्रों की माने तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण तक उसकी पहुंच के चलते उसे रिहा किया गया और वह बन गई पुलिस की खबरी। पुलिस उसकी सूचना पर स्मगलरों के ठिकानों पर छापा डालती और पकड़े गए माल का 10 प्रतिशत जेनाबाई को मिलता।
दाऊद और हाजी मस्तान लेते थे सलाह
दाऊद जब सिर्फ 20 साल का था तब उसकी पहली बार उसकी मुलाकात जेनाबाई दारुवाला से हुई।जेनाबाई दाऊद के पिता को पहले से जानती थी और उसके घर भी उसका आना-जाना था। दाऊद का गॉडफादर यानी मिर्जा हाजी मस्तान भी जेनाबाई को अपनी बहन मानता था और परेशानी में अक्सर उसकी सलाह लेने जाया करता था। गुरु के नक्शेकदम पर चलता हुआ दाऊद भी जेनाबाई का मुरीद बन गया और हर बड़ा काम उससे पूछ कर करने लगा।
जुर्म का अड्डा बन चुका था डोंगरी
1990 के दशक के मध्य तक यह इलाका (डोंगरी) तमाम गलत कारणों से जाना जाता था। क्योंकि यह गिरोहों की असंख्य लड़ाइयों और सांप्रदायिक खून-खराबे का मैदान बना हुआ था। स्मगलिंग वहां का मुख्य धंधा था और यही वह दौर था जब मुंबई में दाऊद ताकतवर हो रहा था। जेनाबाई की उम्र भी ढलने लगी थी और कभी उसकी सलाह पर काम करने वाला दाऊद भी अब उससे दूर होने लगा था।
अंतिम सालों में धर्म का रास्ता चुना
जेनबाई का बड़ा बेटा भी उसके नक्शेकदम पर चलने लगा और एक गैंगवार में उसे गोली मार दी गई। अपने जीवन के अंतिम सालों में जेनाबाई ने सब कुछ छोड़ कर धर्म का रास्ता चुन लिया था। यही कारण था कि उसे उसके बेटे के हत्यारों के बारे में पता चल गया था, लेकिन उसने उन्हें जाने दिया।
हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित की
जेनाबाई ने हिन्दू और मुसलमानों में एकता स्थापित करने के लिए भी कई प्रयास किए। शांति स्थापित करने के लिए उसने दो ग्रुप तैयार किये थे जो दंगों के समय दोनों ओर के लोगों को समझाने का काम करते थे। लेकिन उम्र ढलने के साथ-साथ जेनाबाई का रसूख भी कम हुआ और धीरे-धीरे दाऊद और हाजी मस्तान भी उससे दूर हो गए। जेनाबाई को जानने वाले बताते हैं कि 1993 में मुंबई में हुए धमाकों की घटना से जेनाबाई को बहुत चोट पहुंची थी और वह बीमार रहने लगी और धमाकों के कुछ साल बाद उसने दम तोड़ दिया।
कौन हैं हुसैन जैदी
पेशे से जर्नलिस्ट एस हुसैन जैदी ने क्राइम बीट पर लंबे अरसे तक काम किया। अपने अनुभव को उन्होंने एक किताब की शक्ल में ‘Black Friday – The True Story of the Bombay Bomb Blasts’ में पहली बार पेश किया। 1993 के मुंबई बम धमाकों पर लिखी गई यह किताब बेस्ट सेलर रही। फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप ने इसी नाम से एक प्रसिद्ध फिल्म भी बनाई थी। इस फिल्म ने लॉस एंजिल्स में हुए इंडियन फिल्म फेस्टिवल में ग्रैंड ज्यूरी अवॉर्ड जीता। इसके बाद उन्होंने ‘डोंगरी से दुबई’ नाम की दूसरी किताब लिखी।
उनकी किताब ‘Mafia Queens Of Mumbai: Stories Of Women From The Ganglands’ भी खूब चर्चित रही। उनकी तीनों ही किताबें मुंबई अंडरवर्ल्ड पर आधारित है, लेकिन ‘माफिया क्वींस ऑफ मुंबई’ संभवतः पहली ऐसी किताब है जिसे मुंबई की उन महिलाओं को ध्यान में रखकर लिखा गया है जिन्होंने जुर्म की काली दुनिया में एक मुकम्मल मकाम हासिल किया।
जैदी ने अपने करियर की शुरुआत ‘द एशियन एज’ से की थी। मुंबई अंडरवर्ल्ड पर किये गए उनके गहन शोध का उपयोग अंतरराष्ट्रीय ख्याति के अनेक लेखकों ने अपनी किताबों में भी किया है।
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History Of Mafia Queens Of Mumbai Jenabai.
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