Ranchoddas Rabari ‘Paggi’ Story in Hindi : हाल ही में भारतीय सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने ‘मार्गदर्शक’ आम आदमी के सम्मान में अपनी बॉर्डर पोस्ट का नामकरण किया है। उत्तर गुजरात के सुईगांव अंतरराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र की एक बॉर्डर पोस्ट को रणछोड़दास पोस्ट नाम दिया है। इस पोस्ट पर रणछोड़दास की एक प्रतिमा भी लगाई जाएगी। ‘मार्गदर्शक’ जिसे की आम बोलचाल की भाषा में ‘पगी’ कहा जाता है वो आम इंसान होते है जो दुर्गम क्षेत्र में पुलिस और सेना के लिए पथ पर्दशक का काम करते है। ये उस क्षेत्र की भौगोलिक संरचना से भली भाति वाक़िफ़ होते है।

रणछोड़भाई रबारी
रणछोड़भाई रबारी भी एक ऐसे ही इंसान थे जिन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 व 71 में हुए युद्ध के समय सेना का जो मार्गदर्शन किया, वह सामरिक दृष्टि से निर्णायक रहा। जनवरी-2013 में 112 वर्ष की उम्र में रणछोड़भाई रबारी का निधन हो गया था।
एक आम आदमी के ऊपर पहली बार पोस्ट का नामकरण
सुरक्षा बल की कई पोस्ट के नाम मंदिर, दरगाह और जवानों के नाम पर हैं, किन्तु रणछोड़भाई पहले ऐसे आम इंसान हैं, जिनके नाम पर पोस्ट का नामकरण किया गया है। रणछोड़भाई अविभाजित भारत के पेथापुर गथडो गांव के मूल निवासी थे। पेथापुर गथडो विभाजन के चलते पाकिस्तान में चला गया है। पशुधन के सहारे गुजारा करने वाले रणछोड़भाई पाकिस्तानी सैनिकों की प्रताड़ना से तंग आकर बनासकांठा (गुजरात) में बस गए थे।
1965 के भारत-पाक युद्ध में क्या थी भूमिका:
साल 1965 के आरंभ में पाकिस्तानी सेना ने भारत के कच्छ सीमा स्थित विद्याकोट थाने पर कब्जा कर लिया था। इसको लेकर हुई जंग में हमारे 100 सैनिक शहीद हो गए थे। इसलिए सेना की दूसरी टुकड़ी (10 हजार सैनिक) को तीन दिन में छारकोट तक पहुंचना जरूरी हो गया था, तब रणछोड़ पगी के सेना का मार्गदर्शन किया था। फलत: सेना की दूसरी टुकड़ी निर्धारित समय पर मोर्चे पर पहुंच सकी। रणक्षेत्र से पूरी तरह परिचित पगी ने इलाके में छुपे 1200 पाकिस्तानी सैनिकों के लोकेशन का भी पता लगा लिया था। इतना ही नहीं, पगी पाक सैनिकों की नजर से बचकर यह जानकारी भारतीय सेना तक पहुंचाई थी, जो भारतीय सेना के लिए अहम साबित हुई। सेना ने इन पर हमला कर विजय प्राप्त की थी।

1965 के भारत-पाक युद्ध की फोटो
साल 1971:
इस युद्ध के समय रणछोड़भाई बोरियाबेट से ऊंट पर सवार होकर पाकिस्तान की ओर गए। घोरा क्षेत्र में छुपी पाकिस्तानी सेना के ठिकानों की जानकारी लेकर लौटे। पगी के इनपुट पर भारतीय सेना ने कूच किया। जंग के दौरान गोली-बमबारी के गोला-बारूद खत्म होने पर उन्होंने सेना को बारूद पहुंचाने का काम भी किया। इन सेवाओं के लिए उन्हें राष्ट्रपति मेडल सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
जनरल सैम माणिक शॉ के हीरो थे रणछोड़ पगी:
रणछोड पगी जनरल सैम माणेक शॉ के ‘हीरो’ थे। इतने अजीज कि ढाका में माणिक शॉ ने रणछोड़भाई पगी को अपने साथ डिनर के लिए आमंत्रित किया था। बहुत कम ऐसे सिविल लोग थे, जिनके साथ माणिक शॉ ने डिनर लिया था। रणछोडभाई पगी उनमें से एक थे।
अंतिम समय तक माणिक शॉ नहीं भूले थे पगी को:
वर्ष 2008 में 27 जून को जनरल सैम माणिक शॉ का निधन हो गया। वे अंतिम समय तक रणछोड़ पगी को भूल नहीं पाए थे। निधन से पहले हॉस्पिटल में वे बार-बार रणछोड़ पगी का नाम लेते थे। बार-बार पगी का नाम आने से सेना के चेन्नई स्थित वेलिंग्टन अस्पताल के दो चिकित्सक एक साथ बोल उठे थे कि ‘हू इज पगी’। जब पगी के बारे में चिकित्सकों को ब्रीफ किया गया तो वे भी दंग रह गए।

जनरल सैम माणिक-शॉ
रणछोड़भाई के कलेउ के लिए उतारा था हेलिकॉप्टर:
साल 1971 के युद्ध के बाद रणछोड़ पगी एक साल नगरपारकर में रहे थे। ढाका में जनरल माणिक शॉ ने रणछोड़ पगी को डिनर पर आमंत्रित किया था। उनके लिए हेलिकॉप्टर भेजा गया। हेलिकॉप्टर पर सवार होते समय उनकी एक थैली नीचे रह गई, जिसे उठाने के लिए हेलिकॉप्टर वापस उतारा गया था। अधिकारियों ने थैली देखी तो दंग रह गए, क्योंकि उसमें दो रोटी, प्याज और बेसन का एक पकवान (गांठिया) भर था।
रणछोड़भाई रबारी
इनका पूरा नाम रणछोड़भाई सवाभाई रबारी। वे पाकिस्तान के घरपारकर, जिला गढडो पीठापर में जन्मे थे। बनासकांठा पुलिस में राह दिखाने वाले (पगी) के रूप में सेवारत रहे। जुलाई-2009 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली थी। विभाजन के समय वे एक शरणार्थी के रूप में आए थे। जनवरी-2013 में 112 वर्ष की उम्र में रणछोड़भाई रबारी का निधन हो गया था।
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