मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 70 किलोमीटर दूर ब्यावरा रोड पर स्थित है चिड़ी-खो अभयारण्य। यहां से सात किलोमीटर की दूरी पर है सांका जागीर गांव। 1200 की अाबादी वाले इस गांव में ज्यादातर परिवार गुर्जर समाज के। यह गांव एक खास मान्यता के कारण पुरे भारत में प्रसिद्ध है।
दशकों ने नहीं हुआ किसी महिला का प्रसव
इस गांंव की यह खासियत है की इस गांंव में पिछले कई दशकों से किसी महिला का प्रसव नहीं हुआ है । बच्चे के जन्म के समय महिलाओं को गांंव से बाहर ले जाया जाता है। पीहर में या शहर के किसी अस्पताल में या फिर खेतों में ही प्रसव करा लिया जाता है। मान्यता रही है कि बच्चा यहां जन्मा तो विकलांग होगा।
मंदिर की पवित्रता जुडी है मान्यता
गांव वाले बताते हैं कि किसी जमाने में श्यामजी के मंदिर की पवित्रता को बनाए रखने के लिए बुजुर्गों ने प्रसव गांव से बाहर कराने की व्यवस्था दी थी। बाद में इसमें यह बात जुड़ गई कि यहां जन्मा शिशु विकलांग होगा। आज भी महिलाओं को प्रसव के लिए गांव के बाहर भेजा जाता है।
प्रसव से एक हफ्ते पहले कर देते हैं शिफ्ट
लगातार 35 साल तक सरपंच रहे मांगीलाल सिंह बताते हैं कि हमने नहीं देखा कि किसी भी महिला ने यहां बच्चे को जन्म दिया हो। गर्भवती महिलाओं को डिलीवरी की तारीख के एक हफ्ते पहले खेतों में बनी झोंपड़ी में शिफ्ट कर दिया जाता था। खुद मांगीलाल के 8 लड़के हैं। सभी खेत में बनी कोठी में जन्मे। उनकी सुनी-सुनाई सी दलील है, गांव को श्यामजी ने अभिशप्त किया हुआ है। इस कारण कोई जोखिम नहीं लेता।
प्रशासन ने मेटरनिटी होम बनाने के लिए दिए 10 लाख रुपए
नए सरपंच नरेंद्र सिंह उनके ही बेटे हैं और इसे एक कुरीति मानते हैं। पिछले साल सरपंच बनने के बाद उनका मकसद गांव को इस अजीब मान्यता से छुटकारा दिलाना है। पंचायत के बाकी सदस्य भी उनके साथ हैं। प्रशासन ने मेटरनिटी होम के लिए 10 लाख रुपए की मंजूरी भी दे दी है। नरेंद्र गांव वालों को यह समझाने में लगे हैं कि अगर हम श्यामजी को पूजते हैं तो उन पर विश्वास भी होना चाहिए। उनके कारण कोई क्यों अभिशप्त होगा। यह कोरा अंधविश्वास है।
धरोहर से ज्यादा कुरीति की पहचान
गांव में दसवीं-ग्यारहवीं सदी के मंदिरों के अवशेष हैं। मंदिर के सदियों पुराने स्तंभों से यह जाहिर है कि यह गांव काफी पुराना है। मगर गांव की चर्चा इसकी शानदार ऐतिहासिक धरोहरों की वजह से नहीं, प्रसव से जुड़ी इस मान्यता को लेकर ज्यादा थी। नए सरपंच की टीम गांव की यह पहचान बदलने में जुट गई है।
मैं हर हाल में यह काम करूंगा
मुझे आश्चर्य है कि 35 साल सरपंच रहे मेरे पिता यह काम नहीं कर सके। मैं हर हाल में मेटरनिटी होम बनाऊंगा ताकि गांव की पहचान बदले। -नरेन्द्र सिंह गुर्जर, सरपंच
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