Bhagwan Vishwkarma ne kiye the ye nirman : भगवान विशवकर्मा को देवताओं का आर्किटेक्ट या देवशिल्पी कहा जाता है। उन्हें हम दुनिया के प्रथम आर्किटेक्ट और इंजीनियर भी कह सकते है। हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार देवताओं के लिए भवनों, महलों व रथों आदि का निर्माण विश्वकर्मा ही करते थे। हम यहाँ पर आपको भगवान विशवकर्मा के द्वारा किये गए कुछ प्रमुख निर्माणों के बारे में बताएँगे।
कौन थे विशवकर्मा :-
स्कंद पुराण के प्रभात खण्ड में एक श्लोक मिलता है-
बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी।
प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च।
विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापति:।।16।।
अर्थात- महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना जो ब्रह्मविद्या जानने वाली थी, वह अष्टम् वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उससे संपूर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ। पुराणों में कहीं योगसिद्धा, वरस्त्री नाम भी बृहस्पति की बहन का लिखा है।
देवशिल्पी विशवकर्मा के कुछ प्रमुख निर्माण :-
सोने की लंका का निर्माण (Construction of Golden Lanka) :-
वाल्मीकि रामायण के अनुसार सोने की लंका का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। पूर्वकाल में माल्यवान, सुमाली और माली नाम के तीन पराक्रमी राक्षस थे। वे एक बार विश्वकर्मा के पास गए और कहा कि आप हमारे लिए एक विशाल व भव्य निवास स्थान का निर्माण कीजिए। तब विश्वकर्मा ने उन्हें बताया कि दक्षिण समुद्र के तट पर त्रिकूट नामक एक पर्वत है, वहां इंद्र की आज्ञा से मैंने स्वर्ण निर्मित लंका नगरी का निर्माण किया है। तुम वहां जाकर रहो। इस प्रकार लंका में राक्षसों का आधिपत्य हो गया। जबकि कहीं धर्म ग्रंथो में वर्णन है की विशवकर्मा ने सोने की लंका निर्मित करके नलकुबेर को दी थी जो की रावण का सौतेला भाई था। विशवकर्मा के कहने पर ही नल कुबेर ने सोने की लंका बाद में रावण को सौप दी थी।
रामसेतु का निर्माण (Construction of Ramsetu) :-
वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम के आदेश पर समुद्र पर पत्थरों से पुल का निर्माण किया गया था। रामसेतु का निर्माण मूल रूप से नल नाम के वानर ने किया था। नल शिल्पकला (इंजीनियरिंग) जानता था क्योंकि वह देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा का पुत्र था। अपनी इसी कला से उसने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था।
भगवान महादेव के रथ का निर्माण (Construction of Mahadev’s Rath) :-
महाभारत के अनुसार तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली के नगरों का विध्वंस करने के लिए भगवान महादेव जिस रथ पर सवार हुए थे, उस रथ का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। वह रथ सोने का था। उसके दाहिने चक्र में सूर्य और बाएं चक्र में चंद्रमा विराजमान थे। दाहिने चक्र में बारह आरे तथा बाएं चक्र में 16 आरे लगे थे।
श्रीकृष्ण की द्वारिका नगरी का निर्माण (Construction of Shri Krishna’s Dwarika) :-
श्रीमद्भागवत के अनुसार द्वारिका नगरी का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था। उस नगरी में विश्वकर्मा का विज्ञान (वास्तु शास्त्र व शिल्पकला) की निपुणता प्रकट होती थी। द्वारिका नगरी की लंबाई-चौड़ाई 48 कोस थी। उसमें वास्तु शास्त्र के अनुसार बड़ी-बड़ी सड़कों, चौराहों और गलियों का निर्माण किया गया था।
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