Ahmad Faraz (अहमद फ़राज़)
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Haath uthaye hain magar lab pe dua koi nahi
Haath uthaye hain magar lab pe dua koi nahi
Ki ibadat bhi to wo jis ki jaza koi nahi
Ye bhi waqt aana tha, ab to gosh bar awaz hai
Aur mere barabt e dil mein sada koi nahi
Aa k ab tasleem kar lein, tu nahi to main sahi
Kon maanega k hum mein bewafa koi nahi
Waqt ne wo khak urai hai k dil k dasht se
Qaafle guzre hain phir bhi naqsh e paa koi nahi
Khud ko yun mehsoor kar betha hoon apni zaat mein
Manzilen chaaron taraf hain raasta koi nahi
Kaise raston se chale aur kis jagah pohanche Faraz
Ya hujoom e dostaan tha saath ya koi nahi
Ahmad Faraz
<—-Jaana dil ka shehar, nagar afsos ka hai Kis ko gumaan hai abke mere saath tum bhi the—->
Collection of Ghazals and Lyrics of Ahmad Faraz
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हाथ उठाए हैं मगर लब पे दुआ कोई नहीं
हाथ उठाए हैं मगर लब पे दुआ कोई नहीं
की इबादत* भी तो वो जिस की जज़ा* कोई नहीं
ये भी वक़्त आना था अब तू गोश-बर- आवाज़* है
और मेरे बरबते-दिल* में सदा* कोई नहीं
आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा के हम में बेवफ़ा कोई नहीं
वक़्त ने वो ख़ाक उड़ाई है के दिल के दश्त से
क़ाफ़िले गुज़रे हैं फिर भी नक़्शे-पा* कोई नहीं
ख़ुद को यूँ महसूर* कर बैठा हूँ अपनी ज़ात* में
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं
कैसे रस्तों से चले और किस जगह पहुँचे “फ़राज़”
या हुजूम-ए-दोस्ताँ* था साथ या कोई नहीं
इबादत = पूजा
जजा = प्रतिफल
गोश-बर- आवाज़ = आवाज़ पर कान लगाए हुए
बरबते-दिल = सितार जैसा एक वाद्य यंत्र
सदा = आवाज़्
नक़्शे-पा = पद-चिह्न
महसूर = घिरा हुआ
ज़ात = अस्तित्व
हुजूम-ए-दोस्ताँ = दोस्तों का समूह
अहमद फ़राज़
<—-जानाँ दिल का शहर, नगर अफ़सोस का है किस को गुमाँ है अब के मेरे साथ तुम भी थे—->
अहमद फ़राज़ की ग़ज़लों और गीतों का संग्रह
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