Waseem Barelvi
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Main chahata bhi yahi tha wo bewafa nikle
Main chahata bhi yahi tha wo bewafa nikle
Use samjhne ka koi to silsila nikle
Kitaab-e-maazi ke aurak ulat ke dekh jara
Na jane kaun sa safha muda hua nikle
Jo dekhne me bahut hi kareeb lagta hai
Usi ke bare me socho to fasla nikle
Waseem Barelvi
<—–Kuch is tarah wo meri zindgi mein aaya tha Wo mujhe chhodkar yoon aage badha jata hai—->
Waseem Barelvi ki Ghazalon aur Shayariyon ka Sangrah
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मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले
मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले
उसे समझने का कोई तो सिलसिला निकले
किताब-ए-माज़ी* के पन्ने उलट के देख ज़रा
न जाने कौन-सा पन्ना मुड़ा हुआ निकले
जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता है
उसी के बारे में सोचो तो फ़ासला निकले
* किताब-ए-माज़ी : अतीत की पुस्तक
वसीम बरेलवी
<—–कुछ इस तरह वह मेरी जिंदगी में आया था वो मुझे छोडकर यूँ आगे बढा जाता है—–>
वसीम बरेलवी की ग़ज़लों और शायरियों का संग्रह
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wahh says
चुनिन्दा गज़लों में से एक ग़ज़ल “मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले”
वाह दिल को छू लेती हैं ये लाइन
डॉ वासिम जी गज़ले और शेरो शायरी के क्या कहने लाज़वाब
धन्यवाद आप का